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संस्कृत छाया
भद्रव्रतश्रमणसहिता, उत्तिष्ठद्विशाखप्रकटमन्दाराः ।
विचरद्भरिनक्षत्रा राजतेऽटवी नभःश्रीरिव ।। २२४ ।। गुजराती अनुवाद
२२४. सारा व्रत नियमोनुं पालन करनारा साधुओ जेमां छे. शाखा विनाना प्रगट मंदार वृक्षो जेमा छे तथा अल्लूक (टींछ) प्राणीओ जेमां फटी रह्या छ।
(पक्षे)- भद्रपद तथा श्रावणनक्षत्रथी युक्त.. विशाखा-शनि-मंगल-विगेरे नक्षत्रोथी युक्त आकाशनी शोधानी जेम आ अटवी शोधी रही छे. हिन्दी अनुवाद____जिसमें व्रत आदि नियमों का पालन करने वाले साधु हैं, जिसमें शाखा रहित मन्दार वृक्ष है, जिसमें भालू आदि प्राणि विचरण कर रहे हैं। (पक्षे) जहाँ भाद्रपद तथा श्रवण नक्षत्र से युक्त विशाखा, शनि, मंगल आदि नक्षत्रों से युक्त आकाश सुशोभित हो रहा है। गाहा
अह तं अडविं सुइरं पलोययंतीइ गाढ-तिसियाए ।
एक्कम्मि दिसा-भाए दिह्र जल-भरिय-सरमेगं ।। २२५।। संस्कृत छाया
अथ तामटवीं सुचिरं प्रलोकयन्त्या गाढतृषितया ।
एकस्मिन् दिग्भागे छटं जलभृतसर एकम् ।। २२५ ।। गुजराती अनुवाद
२२५. हवे आ अटवीने लांबा काल पर्यंत जोती अत्यन्त तृषातुर थयेली में एक दिशा भागमां. पाणीथी भरेलुं एक सटोवर जोयु. हिन्दी अनुवाद
ऐसे जंगल को लम्बे समय से देखती, प्यास से व्याकुल मैंने पानी से भरा हुआ एक सरोवर देखा।
गाहा
तत्तो तत्तोहुत्तं चलिया भय-लोल-लोयणा अहयं ! कहकहवि हु संपत्ता तम्मि पएसम्मि किच्छेण ।। २२६।।