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________________ गाहा कइवय-पुरिस-सहाओ तरुण-नरो वेसरीइ आरूढो । कय-मुह-संधी पुरओ दिट्ठो उद्भलियंगिल्लो।।१९६।। संस्कृत छाया कतिपयपुरुषसहायस्तरुणनरो वेसर्यामारूडः । कृतमुखसन्धिः पुरतो छष्ट उधूलिताङ्गवान् ।। १९६ ।। गुजराती अनुवाद ११६. (सार्थनो मेलाप) केटलाक पुरुषोनी साथे खच्चर उपर बेठेलो, धूलथी खरडायेल शरीरवालो युवान पुरुष आगळ जोयो। हिन्दी अनुवाद अनेक पुरुषों के साथ खच्चर पर बैठा हुआ, धूलधूसरित शरीर वाला एक युवक दिखाई दिया। गाहा अह सो दह्रण ममं विम्हिय-हियउव्व वेसराहिंतो। उत्तरिय मज्झ चलणेसु निवडिओ भणइ एवं तु ।।१९७।। संस्कृत छाया अथ स ष्ट्वा मां विस्मित हृदय इव वेसर्याः ।। उत्तीर्य मम चरणयो-र्निपतितो भणति एवन्तु ।। १९७ ।। गुजराती अनुवाद १९८. हवे ते पुरुष मने जोइने जाणे विस्मय पामेलो खच्चर परथी उतरीने मारा चरणोमां पडयो. अने आ प्रमाणे बोल्यो. हिन्दी अनुवाद___तब वह पुरुष मुझे देखकर आश्चर्य चकित हो खच्चर पर से उतर कर मेरे चरणों में गिरकर इस प्रकार बोलागाहा परिजाणसि भगिणि! ममं सिरिदत्तो हं कुसग्गनयराओ। आसि गओ पर-विसए वणिज्ज-बुद्धीए सत्य-जुओ ।।१९८।।
SR No.525092
Book TitleSramana 2015 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSundarshanlal Jain, Ashokkumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2015
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size15 MB
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