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________________ हिन्दी अनुवाद वे नौकर-चाकर कहाँ हैं? लक्ष्मी कहां हैं, वह विनीत परिवार कहां है, भाग्य के कारण मैं अकेली हो गयी, आगे क्या होगा? गाहा एमाइ चिंतयंती उवरिम-वत्येण छाइडं वयणं । सरण-विहूणा सोएणं तत्थ अहं रोविउं लग्गा ।।१९४।। संस्कृत छाया एवमादि चिन्तयन्ती उपरितनवस्त्रेण च्छादयित्वा वदनम् । शरणविहीना शोकेन तत्राऽहं रोदितुं लग्ना ।। १९४ ।। गुजराती अनुवाद १९४. इत्यादि विचार करती उपरना वस्त्रबड़े मुखने ढांकीने शरण रहित हुं शोकवड़े त्यां रुदन करवा लागी. हिन्दी अनुवाद इत्यादि विचार करती हुई मैं शरण रहित ऊपरी वस्त्र से मुंह ढंककर रोने लगी। गाहा एत्थंतरम्मि केणवि भणिया किं सुयणु! रोयसे करुणं? । तत्तो ससंभमाए पलोइयं मे तओहुत्तं ।।१९५।। संस्कृत छाया अत्रान्तरे केनाऽपि भणिता किं सुतनो ! रोदिषि करुणम् ? । ततः ससम्भ्रमया प्रलोकितं मया तदभिमुखम् ।। १९५ ।। गुजराती अनुवाद १९५. स्टलीवारमा कोइ वड़े कहेवायु- हे सुतनो! केम करुणाजनक रडे छे? त्यारे संभ्रमपूर्वक में तेनी सामे जोयु... हिन्दी अनुवाद तभी किसी ने कहा हे पुत्री क्यों इतनी करुणापूर्वक विलाप कर रही हो। तभी संभ्रम पूर्वक मैंने सामने देखा
SR No.525092
Book TitleSramana 2015 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSundarshanlal Jain, Ashokkumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2015
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size15 MB
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