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________________ गाहा एयं धणदेवस्स ओ वयणं सोऊण सुविणयन्नूहि । भणियं अहो! अउव्वं एयस्स उ बुद्धि-कोसल्लं ।।८।। संस्कृत छाया एतद् धनदेवस्य ओ वचनं श्रुत्वा स्वप्नज्ञैः । भणितं अहो ! अपूर्वमेतस्य तु बुद्धिकौशल्यम् ।। ८० ।। गुजराती अनुवाद ८०. (स्वापाठकोनुं मंतव्य)- आ प्रमाणे धनदेव, वचन सांथलीने स्वप्नपाठकोस कह्यु, खरोखर! आ धनदेवनुं बुद्धिकौशल्य अपूर्व छे. हिन्दी अनुवाद ___ धनदेव का यह वचन सुनकर स्वप्रपाठकों ने कहा इस धनदेव का बुद्धि कौशल अपूर्व है। गाहा सययं तल्लिच्छेहिवि बहु-सत्थ-वियक्खणेहिं अम्हेहिं। तव्धिह-बुद्धि-विउत्तेहिं सक्कियं नो विणिच्छेउं ।। ८१।। संस्कृत छाया- सततं तल्लिप्सैरपि बहुशास्त्रविचक्षणैरस्माभिः । . तद्विधबुद्धिवियुक्तैश्शक्यं नो विनिशेतुम् ।। ८१ ॥ गुजराती अनुवाद ८१. अनेक शास्त्रोमां विचक्षण ते ते शास्त्रोमांज मम होवा छतां तेवा प्रकारनी बुद्धिथी रहित अमारा बड़े आनो निश्चय करवो अशक्य छे. हिन्दी अनुवाद ___ अनेक शास्त्रों में विचक्षण, उन-उन शास्त्रों में मग्न होने पर भी उस प्रकार की बुद्धि से रहित हमारे द्वारा यह निश्चय करना सम्भव नहीं है। गाहा सुसिलिट्ठो नणु अत्यो निरूविओ राय! वणिय-उत्तेण । सव्वेसिं अम्हाणवि सुसंमओ चेव एसोत्ति ।। ८२।।
SR No.525092
Book TitleSramana 2015 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSundarshanlal Jain, Ashokkumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2015
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size15 MB
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