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________________ श्रीमद्धनेश्वरसूरिविरचितं सुरसुंदरीचरिअं दसवाँ परिच्छेदः गाहा तक्कम्म-कुसल-विलया-समूह-विहियम्मि सूइ-कम्मम्मि । हल्लुत्तावलि-गिह-दासि-विहिय-तक्काल-करणिज्जे ।।१।। सहरिस-परियण-वज्जरिय-वज्ज-सुय-जम्म-हरिसिय-मणेण । धणधम्म-सेठिणा अह वद्धावणयं समाढत्तं ।। २।। संस्कृत छाया तत्कर्मकुशलवनितासमूहविहिते सूतिकर्मणि । हल्लुत्तावल (शीघ्रं)गृहदासीविहिततत्कालकरणीये ।।१।। सहर्षपरिजनकथितवर्यसुतजन्महर्षितमनसा । धनधर्मश्रेष्ठिनाऽथ वर्धापनकं समारब्धम् ।।२।। युग्मम् ।। गुजराती अनुवाद १.२. ते कार्यमां कुशल स्वी महिलाओना समूह बड़े सूति कर्म (जन्म कृत्य) कराये छते, तथा शीघ्रता पूर्वक घरनी दासीओ वड़े ते समये करवा योग्य कार्य कराये छते... हर्षपूर्वक स्वजनों द्वारा कहेवायेल श्रेष्ठ पुत्रना जन्मथी खुश भयेल मनवाला धनधर्मश्रेष्ठिर वधामणानो प्रारम्भ कर्यो, (युग्मम्) हिन्दी अनुवाद ___ जन्मकृत्य कराने में कुशल महिलाओं द्वारा सूतिकर्म अर्थात् जन्म कृत्य कराए जाने के बाद, घर की दासियों द्वारा उस समय करने योग्य कार्य-सम्पन्न होने के बाद स्वजनों द्वारा पुत्र जन्म का समाचार पाकर प्रसन्न धनधर्म श्रेष्ठि ने बधाई का कार्य प्रारम्भ किया। गाहा अविय। गहियक्खवत्त-पविसंत-नयर-नारी-जणोह-रमणीयं । रमणी-यण-मुह-मंडण-वावड-निय-बंधु-वर-दारं ।।३।।
SR No.525092
Book TitleSramana 2015 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSundarshanlal Jain, Ashokkumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2015
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size15 MB
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