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________________ लीलावाई कहा में अलंकार व्यवस्था : 61 जब सादृश्य के कारण उपमेय में उपमान की भ्रांति हो जाये अर्थात् जब उपमेय को भूल से उपमान समझ लिया जाये यथा घर - सिर-पसुत्त-कामिणि कवोल संकंत-सासि - कला - वलयं । हंसेहि अहिलसिज्जइ मुणाल - सद्दालुएहि जहिं ॥६०॥ अर्थ जिस देश में घर की छत पर सोयी हुई कामिनियों के चांदनी युक्त कपोलों को मृणाल का लोभी हंस आस्वादन करना चाहता है। ८. दृष्टान्त अन्वरूयापनं यत्र कियया स्वतदर्शयोः । दृष्टान्तं तमिति प्राहुरलङ्कार मनीषिणः । जब पहले एक बात कह कर फिर उससे मिलती-जुलती एक दूसरी बात, पहली बात के दृष्टान्त के रूप में कही जाये। यथा - सासणमिव पुण्णाणं जम्पुप्पत्ति व्व सुह-समूहाणं । आयरिसो आयाराण सइ सुछेत्तं पिव गुणाणं ॥४८॥ अर्थ - यह देश पुण्यकक्षा का कथन करने वाली की तरह, सुख-समूह की उत्पत्ति के स्थान की तरह, आचार के आदर्श स्वरूप की तरह और गुणों के लिए सुंदर क्षेत्र की तरह है। अन्य गाथा ३५, ११५, १८६ ९. उदाहरण जब एक बात कह कर उसके उदाहरण के रूप में कोई दूसरी बात कही जाये और दोनों कथनों की समता जैसे, ज्यो, जिमि आदि किसी वाचक शब्द के द्वारा दिखाई जाये । यथा - B - बहुलंत - दिणेसु ससि व्व जेण वोच्छिण्ण-मंडल- णिवेसो। ठविओ तणुयत्तण- दुक्ख - लक्खिओ रिउ जणो सव्वो ॥६८॥ अर्थ अमावस्या के चन्द्रमा के समान दुर्बलता के दुःख से दुःखी दिखलाई पड़ रहे हैं। यथा - अन्य उदाहरण :- गथा नं २३, २४,६९,११९
SR No.525091
Book TitleSramana 2015 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSundarshanlal Jain, Ashokkumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2015
Total Pages118
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size9 MB
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