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52 : श्रमण, वर्ष 66, अंक 1, जनवरी-मार्च 2015
अलंकार
शब्दालंकार
अर्थालंकार
अनुप्रास लाटानुप्रास पुनरुक्तिप्रकाश
यमक श्लेष वक्रोक्ति पुनरुक्तिवदाभास
वीप्सा चित्रालंकार
उपमा उत्प्रेक्षा रुपक दृष्टान्त अतिशयोक्ति व्यतिरेक संदेह स्मरण विभावना परिसंख्या आदि
शब्दालङ्कार : शब्दालङ्कार के कुल ९ भेद हैं१. अनुप्रास अलङ्कार -
तुल्यश्रुत्सक्षरावृत्तिरनुप्रासः स्फुरद्गुणः।
अतत्पदः स्याच्छोकानां लाटानां तत्पदश्च सः। पद् और वाक्य में वर्गों की आवृत्ति का नाम अनुप्रास अलङ्कार है। जहाँ कथन में एक वर्ण (अक्षर) या अनेक वर्ण जब दो या दो अधिक बार एक ही क्रम में आएं, भले ही उन वर्गों में स्वर की समानता न हो, जहाँ अनुप्रास आवृत्ति हो और माधुर्य आदि गुणों की स्फुरणा हो, वहाँ अनुप्रास अलङ्कार होता है। अर्थात् जहाँ शब्दों की समानता होती है वहाँ अनुप्रास अलंकार होता है। कवि कौतूहल के लीलावई काव्य में इस तरह की प्रवृत्ति प्राप्त होती है। यथा -
अह एवं बहुसो मंतिऊण गोसम्मि णियय-कउयाओ।
संचलिओ परमेसर परिमिय-परिवार-परियरिओ ॥१६४॥ अर्थ - हे परमेश्वर इस प्रकार बहुत मंत्रणा करके प्रात: काल कुछ लोगों से घिरा हुआ अपने सैन्य शिविर से निकला। अनुप्रास अलङ्कार के प्रकार कथन में वर्णों की आवृत्ति के आधार पर अनुप्रास के चार भेद होते हैं: १. छेकानुप्रास - जब वर्ण या वर्ण समूह दो बार ही आए।