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________________ 44 : श्रमण, वर्ष 66, अंक 1, जनवरी-मार्च 2015 २३. आवश्यक चूर्णि, भाग १, पृ० ३५-३६ २४. आचार्य महाप्रज्ञ, नंदीसूत्र, पृ० १८९ विशेषावश्यकभाष्य, गाथा ८१४ की टीका का भावार्थ उवउत्तो सुयनाणी, सच्चं दव्वाईं जाणइ जहत्थं। पासइ य केइ सो पुण, तमचक्खुद्दसणेणं ति।। तेसिमचक्खुद्दसणसाण्णाओ कहं न महनाणी। पासइ, पासइ व कहं सुयनाणी किंकओ भेओ।। - विशेषावश्यकभाष्य, गाथा ५५३५५४ विशेषावश्यकभाष्य, गाथा ८१५-८१६ की टीका का भावार्थ नंदीसूत्रम्, प्राकृत ग्रन्थ परिषद्, वाराणसी ५, सन् १९६६, पृ० १२२ २९. युवाचार्य मधुकरमुनि, भगवतीसूत्र, शतक ८ उ. २, पृ० २६९ विशेषावश्यकभाष्य, गाथा ८१७ ३१. वही, गाथा ८१८-८१९ ३२. वही, गाथा ८२० की टीका का भावार्थ अन्ये त्वाहुः साकारोपयोगान्त:पातित्यान्न पद्ददर्शनम्, दृश्यते चानेन प्रत्यक्षत्वादवधिवदिति। एतदपि न दर्शनम् दृश्यते चानेन विरुद्धमुभयधर्मान्वयाभावाद्वा न किंचिदिति।- विशेषावश्यकभाष्य स्वोपज्ञवृत्ति, गाथा ८१८, पृ० १५५ विशेषावश्यकभाष्य, गाथा ८२१ की टीका ३५. मलयगिरि, नंदीवृत्ति, पृ० १०९ ३६. विशेषावश्यकभाष्य, गाथा ८२२ ३७. मलयगिरि, नंदीवृत्ति, पृ० १०९ ३८. मलयगिरि, आवश्यकवृत्ति, पृ० ८२ *****
SR No.525091
Book TitleSramana 2015 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSundarshanlal Jain, Ashokkumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2015
Total Pages118
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size9 MB
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