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________________ 32 : श्रमण, वर्ष 66, अंक 1, जनवरी-मार्च 2015 या उससे अधिक पूर्वज्ञानी सर्व अभिलाप्य द्रव्यों को जानता है- देखता है, सम्पूर्ण दशपूर्व से निम्न ज्ञानी के लिए भजना है। श्रुतज्ञानी के द्वारा अनुत्तरविमान आदि अदृष्ट देवलोकों आदि का कथन किया जाता है। सर्वथा अदृष्ट का कथन नहीं किया जा सकता है। यद्यपि अभिलाप्य भावों का अनन्तवां भाग श्रुतनिबद्ध है फिर भी सामान्य रूप से सब अभिलाप्य भाव श्रुतज्ञान से ज्ञेय हैं, ऐसा कहा जाता है। इस अपेक्षा से श्रुतज्ञानी सब भावों को जानता-देखता है।१८ विशेषावश्यकभाष्य का मत : भाष्यकार और टीकाकार के अनुसार जो श्रुतज्ञानी उपयोगवान् होता है वह पंचास्तिकाय रूप सभी द्रव्य, लोकालोक रूप सभी क्षेत्र, अतीतादि रूप सभी काल और औदारिक आदि सभी भावों को स्पष्ट रूप से यथार्थत: जानता है, परन्तु सामान्यग्राही दर्शन से नहीं देखता है। क्योंकि जैसे मनःपर्यवज्ञान स्पष्टार्थ का ग्राहक होने से उसका दर्शन नहीं माना गया है, वैसे ही श्रुतज्ञान से भी स्पष्ट (विशेषरूप) ज्ञान होता है, इसलिए उसका भी दर्शन नहीं होता है। 'नंदीसूत्र' में जो द्रव्यादि की अपेक्षा से श्रुतज्ञान का विषय बताया गया है, उन द्रव्यादि की अपेक्षा से श्रुतज्ञानी जानता है, लेकिन देखता नहीं है अर्थात् टीकाकार ने भाष्यकार के अनुसार 'नंदीसूत्र' में 'जाणइ' ‘पासई' के स्थान पर 'जाणइ' न 'पासइ' (जानता है लेकिन देखता नहीं है) प्रयोग होना चाहिए, ऐसा कथन किया है। भाष्यकार ने इस सम्बन्ध में मतान्तर देते हुए कहा कि कुछ आचार्य ऐसा मानते हैं कि श्रुतज्ञानी ज्ञान से जानते हैं, और अचक्षुदर्शन से देखते हैं। क्योंकि श्रुतज्ञानी को मतिज्ञान अवश्य होता है और मतिज्ञान और श्रुतज्ञान में चक्षु तथा अचक्षु यह दो दर्शन बताये गये हैं। मतिज्ञानी चक्षुदर्शन से और श्रुतज्ञानी अचक्षुदर्शन से देखते हैं। लेकिन ऐसा मानना अयोग्य है।९ क्योंकि मतिज्ञान और श्रुतज्ञान में इन्द्रिय मनोनिमित्त समान होने से अचक्षुदर्शन भी दोनों में समान है। तो फिर अचक्षुदर्शन से मतिज्ञानी क्यों नहीं देखता है अर्थात् दोनों अलग-अलग दर्शन से क्यों देखते हैं? इसलिए ऐसा कहना कदाग्रह है। वास्तव में तो यही सही है कि श्रुतज्ञानी जानते हैं लेकिन देखते नहीं हैं।२०
SR No.525091
Book TitleSramana 2015 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSundarshanlal Jain, Ashokkumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2015
Total Pages118
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size9 MB
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