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________________ 'श्रमण परम्परा, अहिंसा एवं शान्ति' : 77 को आचरण में बदलना होगा तभी हमें शान्ति प्राप्त होगी। श्रमण परम्परा का साहित्य दया, दान, समता, करुणा, सहिष्णुता, अहिंसा, तप, त्याग की शिक्षा देता है, पर उसकी सार्थकता तभी है जब हम उसे अपने आचरण में उतारें। उन्होंने कहा कि विश्वबन्धुत्व का उद्घोष हमारी भारतीय संस्कृति की आत्मा है। वैदिक परम्परा का यह उद्घोष 'वसुधैव कुटुम्बकम्' 'ईशावास्यमिदं सर्व यत्किंच जगत्यांजगत् तो बौद्ध अभिलेखों में उत्कीर्ण 'बहुजन हिताय बहुजन सुखाय' और जैन परम्परा के 'सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय' की आत्मा एक ही है। ‘परस्परोपग्रहो जीवानाम्' का यही सन्देश है कि एक दूसरे का उपकार करना जीवों का धर्म है। इन सिद्धान्तों का आचरण में रूपान्तरण ही अहिंसा की वृत्ति को जन्म देता है। जब वृत्ति सबके प्रति हितकर एवं प्रीतिकर बन जाती है तब हिंसा के लिए कोई स्थान नहीं होता और परिणामस्वरूप शान्ति का मार्ग प्रशस्त होता है। प्रो0 तिवारी ने कहा कि हम शान्ति की शुरुआत अपने परिवार से करते हुए इसका विस्तार कर समाज, राष्ट्र और विश्व को शान्ति प्रदान कर सकते हैं। आवश्यकता है तो बस एक दृढ़ संकल्प एवं सार्थक प्रयत्न की। अध्यक्ष पद से बोलते हुए राष्ट्रीय प्रोफेसर एवं पार्श्वनाथ विद्यापीठ, वाराणसी के पूर्व निदेशक प्रो0 महेश्वरी प्रसाद ने कार्यशाला में आये विभिन्न विषयों के प्रतिभागियों की ओर संकेत करते हुए कहा कि ऐसी कार्यशालाएँ ज्ञान के क्षितिज को व्यापक बनाने का कार्य करती हैं। आज आवश्यकता है चिकित्सा एवं तकनीकि के छात्रों का मानविकी विषयों में निहित भारतीय संस्कृति के मूल तत्त्वों को जानने की तथा मानविकी के छात्रों को विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी से परिचित होने की। प्रो० प्रसाद ने कार्यशाला के विषय क्षेत्र को समाज में प्रासंगिक बताते हुए कहा कि मानव शान्ति चाहता है और शान्ति के लिए अहिंसा का वातावरण आवश्यक है। अहिंसा श्रमण परम्परा का प्राण है। विशिष्ट अतिथि पद से बोलते हुए प्रसिद्ध उद्योगपति श्री धनपतराज भंसाली ने कहा कि अहिंसा और शान्ति का वातावरण केवल मौखिक प्रयास ने नहीं बल्कि अपने आचरण में बदलाव से बनेगा।
SR No.525089
Book TitleSramana 2014 07 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokkumar Singh, Rahulkumar Singh, Omprakash Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2014
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size9 MB
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