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________________ 'श्रमण परम्परा, अहिंसा एवं शान्ति : 75 है । प्रमाण एवं नय के अन्तर को स्पष्ट करते हुए उन्होंने सामान्य विशेषात्मक वस्तु के स्वरूप को स्पष्ट किया। उन्होंने नय के विविध भेद-प्रभेदों की चर्चा करते हुए सात नयों का सोदाहरण विस्तृत विवेचन किया | डॉ0 सिंह ने निक्षेप के स्वरूप को स्पष्ट करते हुए बताया कि यह जैन भाषा दर्शन का अनूठा सिद्धान्त है जो कि नाम, स्थापना, द्रव्य एवं भाव रूप से चतुर्विध है। 35. जैन चित्रकला : यह व्याख्यान ज्ञान प्रवाह, वाराणसी की निदेशिका प्रो० कमल गिरि जी का था । प्रो० गिरि ने जैन चित्रकला की सामान्य विशेषताओं को स्पष्ट करते हुए एलोरा गुफाओं की चित्रकला को सर्वप्राचीन जैन चित्रकला बताया जिसे 900-1000ई0 के बीच रखा जा सकता है। इससे पूर्व जैन ग्रन्थों में चित्रों के सम्बन्ध में जानकारी तो मिलती है परन्तु चित्रण प्राप्त नहीं होता। उन्होंने बताया कि चित्रों का अंकन ग्यारहवीं सदी से प्राप्त होने लगता है। इन चित्रों की विशेषताओं का विवेचन करते हुए प्रो0 गिरि ने बताया कि इनमें कम से कम रंगों का प्रयोग है। इन चित्रों पर प्राप्त अभिलेखों से इनके समय का ज्ञान सरलता से हो जाता है। कुछ ऐसे भी चित्र प्राप्त होते हैं जिनके आधार पर यह कहा जा सकता है कि पहले अभिलेख अंकित कराया जाता था उसके बाद चित्रण किया जाता था। इन चित्रों में जैन तीर्थकरों एवं उनसे जुड़ी घटनाओं को मुख्य केन्द्र बिन्दु बनाया गया था। इन चित्रों की पृष्ठभूमि लाल रंग से निर्मित की जाती थी परन्तु परन्तु बाद में गहरे नीले रंग के प्रयोग की बहुलता दिखने लगी। परवर्ती काल में इन चित्रों का निर्माण कागजों पर भी दृष्टिगत होता है । 36. प्रतीत्य समुत्पाद : यह व्याख्यान प्रो0 अभिमन्यु सिंह, दर्शन एवं धर्म विभाग, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी द्वारा दिया गया। प्रो० सिंह ने बताया कि प्रतीत्यसमुत्पाद बौद्ध दर्शन का केन्द्रीयभूत कारणता सिद्धान्त है। प्रतीत्य
SR No.525089
Book TitleSramana 2014 07 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokkumar Singh, Rahulkumar Singh, Omprakash Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2014
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size9 MB
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