________________
64 : श्रमण, वर्ष 65, अंक 3-4/जुलाई-दिसम्बर 2014 आचार्य हेमचन्द्र की देशीनाममाला, शतावधानी रत्नचन्द्र का अर्धमागधी कोश एवं हरगोविन्ददास सेठ की पाइअसद्दमहण्ण्वो सहित 10 अन्य प्राकृत भाषा के कोशों का विशद् विवेचन किया। डॉ० सिंह ने हिन्दी भाषा के कोशों के अन्तर्गत मोहनलाल बाँठिया का लेश्या कोश एवं क्रिया कोश, जिनेन्द्रवर्णी का जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश, बालचन्द शास्त्री का जैनलक्षणावली तथा आचार्य हेमचन्द्र के जैन आगम वनस्पति कोश सहित हिन्दी भाषा के 25 अन्य कोशों के रचनाकार, रचनाकाल एवं विषयवस्तु का विवेचन करते हुए अन्य भाषा के कोशों का भी उल्लेख किया। 17. भारतीय चिन्तन की श्रमण परम्परा : इस विषय पर दर्शन एवं धर्म विभाग, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी के प्रो0 आनन्द मिश्र द्वारा व्याख्यान दिया गया। प्रो0 मिश्र ने कहा कि भारतीय परम्परा की दो अनादि धाराएँ हैं- वैदिक एवं अवैदिक। वैदिक परम्परा ब्राह्मण परम्परा है जबकि अवैदिक परम्परा श्रमण परम्परा है। जैन और बौद्ध श्रमण परम्परा के दो प्रमुख अंग हैं। वेद का मूल स्वर जीवन को सम्पूर्ण रूप से जीना है जबकि श्रमण परम्परा संन्यास एवं मोक्ष का निर्देशन करती है। अपने व्याख्यान में प्रो0 मिश्र ने कहा कि श्रमण परम्परा का प्रारम्भ महावीर एवं गौतम बुद्ध के पूर्व ही हो गया था। दीघनिकाय में बुद्ध से पूर्व छः प्रमुख श्रमण आचार्यों अजीत केशकम्बल, मक्खली गोशाल, भिक्षु पूर्ण काश्यप, प्रक्रुद्ध कात्यायन, संजय वेलठ्ठिपुत्त एवं निग्गंथनातपुत्त का उल्लेख प्राप्त होता है। प्रो0 मिश्र ने इन सभी आचार्यों के सिद्धान्तों एवं जीवन परिचय पर विशद् प्रकाश डाला।
18. जैन कथा एवं काव्य साहित्य :
यह व्याख्यान डॉ० अर्चना श्रीवास्तव, संस्कृत विभाग, महाराज बलवन्त सिंह पी0जी0 कॉलेज, गंगापुर, वाराणसी का था। उन्होंने बताया कि दार्शनिक एवं धार्मिक मान्यताओं को जनमानस तक पहुँचाना कथा का