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________________ 62 : श्रमण, वर्ष 65, अंक 3-4/जुलाई-दिसम्बर 2014 13. षड्द्रव्य पंचास्तिकाय एवं तत्त्वविचार : यह व्याख्यान डॉ० राहुल कुमार सिंह, रिसर्च एसोसिएट, पार्श्वनाथ विद्यापीठ, वाराणसी का था। डॉ0 सिंह ने बताया कि जैन दर्शन निवृत्तिमार्गी है। इसके मूल में व्यक्ति के आत्मिक उन्नयन की भावना कार्य करती है जिसकी प्राप्ति सात या नौ सोपानों में होती है जिन्हें सप्त या नौ तत्त्व की संज्ञा दी जाती है। इस आध्यात्मिक उन्नति के लिए सर्वप्रथम जगत् के स्वरूप का ज्ञान आवश्यक है जो कि जीव एवं अजीव दो द्रव्यों का सम्मिश्रण है। अजीव भी धर्म, अधर्म, काल, आकाश, पुदगल के भेद से पंचविध हैं और रूपी एवं अरूपी में विभक्त हैं। इनका विभाजन अस्तिकाय एवं अनस्तिकाय रूप में भी प्राप्त होता है। डॉ० सिंह ने बताया कि द्रव्य व्यवस्था को समझने के पश्चात् जीव को आस्रव और उसके फल बन्धन का ज्ञान अति आवश्यक है क्योंकि इनके स्वरूप को समझने के बाद ही वह संवर एवं निर्जरा की ओर अग्रसर होगा। इस प्रकार सम्यक् ज्ञान, सम्यक् दर्शन एवं सम्यक चारित्र द्वारा आत्मोपलब्धि करता है। 14. जैनागम एवं आगमिक व्याख्या साहित्य : यह व्याख्यान कार्यशाला निदेशक डॉ0 अशोक कुमार सिंह द्वारा दिया गया। उन्होंने बताया कि आगम सामान्य रूप से तीर्थंकरों के उपदेश हैं। तीर्थंकरों के शिष्य गणधर उनके उपदेशों को आधार बनाकर आगमों की रचना करते हैं। प्रत्येक अवसर्पिणी में 24 तीर्थकर होते हैं और प्रत्येक तीर्थंकर के शासन में अपने आगम होते हैं। आगम अर्थरूप में उपदिष्ट हैं और उपदेशों को गणधरों ने सूत्र रूप में ग्रथित किया है। डॉ. सिंह ने बताया कि आगम अर्थप्रधान होते हैं जबकि वेद शब्द प्रधान हैं। आगमों की भाषा अर्धमागधी है क्योंकि महावीर ने इसी भाषा में उपदेश दिया था। इस सम्बन्ध में उन्होंने समवायांग, भगवतीसूत्र, औपपातिक, राजप्रश्नीय, प्रज्ञापना, आचारांग आदि का उल्लेख करते हुए पाटलिपुत्र, मथुरा एवं वल्लभी की वाचनाओं पर विस्तृत प्रकाश डाला।
SR No.525089
Book TitleSramana 2014 07 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokkumar Singh, Rahulkumar Singh, Omprakash Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2014
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size9 MB
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