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________________ 'श्रमण परम्परा, अहिंसा एवं शान्ति' विषयक राष्ट्रीय कार्यशाला में प्रदत्त व्याख्यानों का संक्षिप्त विवरण डॉ० श्रीनेत्र पाण्डेय इस कार्यशाला का उद्घाटन 30 दिसम्बर 2014 दिन मंगलवार को हुआ। उद्घाटन सत्र के मुख्य अतिथि सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी के प्रतिकुलपति प्रो0 युदनाथ प्रसाद दूबे थे एवं अध्यक्ष दर्शन एवं धर्म विभाग, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी के पूर्व विभागाध्यक्ष तथा भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली के लाइफ टाइम अचीवमेण्ट अवार्डी प्रो0 अशोक कुमार चटर्जी थे। मुख्य अतिथि पद से सम्बोधित करते हुए प्रो0 यदुनाथ प्रसाद दूबे ने कहा कि भारतीय संस्कृति की प्रमुख विशेषता अनेकता में एकता है। हमें हमारे ऋषियों, अर्हतों के मूल वचनों को समग्र परिवेश में समझना होगा। विभिन्न परम्पराओं के मूल ग्रन्थों में कोई विभाजक रेखा नहीं है। जो विसंगतियाँ पैदा हुई हैं, वह कालान्तर में उसकी व्याख्याओं एवं मूल के हार्द्र को न समझने के कारण हुई हैं। विभिन्न परम्पराओं के प्राचीन ग्रन्थों में विभिन्न सम्प्रदायों के प्रवर्तक आदि का नाम सम्मान के साथ लिया गया है। अतः उनकी दृष्टि विभेदात्मक नहीं हो सकती। प्रो0 दूबे ने कहा कि अहिंसा एवं शान्ति कोई बाजार में मिलने वाली वस्तु नहीं है, वरन् आत्मावलोकन से प्राप्त होती है। अध्यक्षता करते हुए प्रो0 अशोक कुमार चटर्जी ने श्रमण परम्परा की महत्ता स्पष्ट करते हुए कहा कि भारतीय संस्कृति की परिचर्चा में श्रमण एवं ब्राह्मण परम्पराओं की चर्चा एक संगम के रूप में प्राप्त होती है जबकि यह संगम नहीं अपितु एक त्रिवेणी है। इसमें तांत्रिक परम्परा का उतना ही महत्त्व है जितना कि सरस्वती का गंगा-यमुना संगम में। उन्होंने बताया कि वस्तुतः अहिंसा एक उदासीन शब्द या भाव है। हिंसा और अहिंसा की सीमा का परस्पर निर्धारण वैयक्तिक एवं परिस्थितिजन्य है।
SR No.525089
Book TitleSramana 2014 07 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokkumar Singh, Rahulkumar Singh, Omprakash Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2014
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size9 MB
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