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________________ जैन श्रमणी-संघ और नारी उत्थान : 47 स्वर्गलोक में सुख की इच्छा, सद्गुरुओं की सेवा के लिए (उवायपवज्जा), ऋण से मुक्ति पाने के लिए (मोयावइत्ता) तथा कभी-कभी एक-दूसरे की देखा-देखी (संगारपव्वज्जा) के कारण भी प्रव्रज्या ले ली जाती थी। इन सामान्य कारणों के अतिरिक्त और भी कुछ कारण थे, जिनसे प्रेरित होकर महिलाओं ने श्रमणी-संघ में प्रवेश लिया था। पति की मृत्यु हो जाने पर या पति द्वारा प्रव्रज्या ग्रहण कर लेने पर पत्नियाँ भी प्रव्रज्या ग्रहण कर लेती थीं। उत्तराध्ययन सूत्र में राजीमती का उदाहरण मिलता है, जिसके अनुसार उसने यह समाचार पाकर कि उसके भावी पति श्रमण हो गये हैं, श्रमणी बनने का निश्चय कर लिया। इसी प्रकार वाशिष्ठी का उल्लेख मिलता है, जिसने पति और पुत्रों को प्रव्रज्या ग्रहण करते हुए देखकर संसार का त्याग किया था। उत्तराध्ययन नियुक्ति के अनुसार मदन-रेखा जब गर्भवती थी, उसके पति की हत्या कर दी गयी, इस कारण उसने संन्यास ग्रहण कर लिया। यशभद्रा के पति के ऊपर भी आक्रमण हुआ, जिसके फलस्वरूप भयभीत होकर उसने प्रव्रज्या ग्रहण कर लिया। उत्तरा ने अपने भाई आचार्य शिवभूति का अनुसरण करते हुए प्रव्रज्या ग्रहण किया। इसी प्रकार बाल विधवा धनश्री ने भी भाई के साथ ही संन्यास लिया।' स्थूलभद्र की सातों बहनों ने भी भाई का अनुसरण करते हुए संन्यास ग्रहण किया था। ज्ञाताधर्मकथा में पोट्टिला तथा सुकुमालिका के प्रव्रज्या लेने का कारण पति का प्रेम न मिल पाना था। इस प्रकार के अनेक उदाहरण मिलते हैं, जिनमें महिलाओं ने कभी दूसरों से प्रभावित होकर तथा कभी स्वयं ही प्रेरित होकर श्रमणी-संघ स्वीकार किया। संघ में प्रवेश लेने वाली महिलाएं समाज के प्रत्येक वर्ग से थीं। संघ में प्रवेश लेने हेतु नारी के उम्र की अन्तिम सीमा निर्धारित नहीं थी। हाँ, आठ वर्ष से कम उम्र की कन्या को दीक्षा ग्रहण का अधिकार नहीं था।12 संघ में प्रवेश के लिए वर्ण या जातिगत भेदभाव नहीं था। क्षत्रिय, ब्राह्मण, वैश्या तथा शूद्र जाति की महिलाओं के दीक्षाग्रहण करने के उल्लेख मिलते हैं।
SR No.525089
Book TitleSramana 2014 07 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokkumar Singh, Rahulkumar Singh, Omprakash Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2014
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size9 MB
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