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________________ 12 : श्रमण, वर्ष 65, अंक 3-4/जुलाई-दिसम्बर 2014 दोनों प्रकार का माना जा सकता है, क्योंकि पौद्गलिक वेदनीय कर्म के निमित्त से उत्पन्न होने वाले सुख-दुःख कथंचित् रूपी होने से मूर्त हैं, किंतु अव्याबाध आत्मिक सुख अमूर्त ही होता है, मूर्त नहीं हो सकता। निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि आचार्य विद्यानन्द ने मूर्त्तत्व एवं अमूर्त्तत्व पर पर्याप्त विचार किया है। वैशेषिक दर्शन की मान्यताएं उन्हें आत्मसात हैं, किन्तु जैनदर्शन की अनेकान्तदृष्टि से वस्तुसत् की परीक्षा करने में वे दक्ष हैं, अतः सामान्य विशेष एवं समवाय की पृथक पदार्थता का भी निरसन करते हैं एवं उनमें मूर्तत्व, अमूर्त्तत्व भी सिद्ध कर देते हैं। संदर्भ : 1. (क) बौद्धों द्वारा खण्डन के लिए द्रष्टव्य, धर्मकीर्ति एवं शान्तरक्षित के ग्रंथ । (ख) जैनों द्वारा खण्डन के लिए द्रष्टव्य प्रभाचन्द्र एवं वादिदेवसूरि आदि के ग्रंथ। मूर्त्तत्वमवच्छिन्नपरिमाणयोगित्वम् ।- श्रीधर रचित न्यायकन्दली, गंगानाथ झा ग्रंथमाला, प्रशस्तपादभाष्य (न्यायकन्दली सहित), सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी, द्वितीय संस्करण, 1977 पृ0 57 क्षितिजलज्योतिरनिलमनसां क्रियावत्वमूर्त्तत्वपरत्वापरत्ववेगवत्त्वानि ।प्रशस्तपादभाष्य, साधर्म्यवैधर्म्य प्रकरण, पृ0 56 . न्यायसिद्धान्तमुक्तावली, प्रत्यक्ष परिच्छेद, डॉ0 धर्मेन्द्रनाथ शास्त्री कृत हिन्दी व्याख्या, मोतीलाल बनारसीदास, दिल्ली, प्रथम संस्करण, पुनर्मुद्रण 1977, पृ0 152-153 रूपादीनां गुणानां सर्वेषां गुणत्वाभिसम्बन्धो द्रव्याश्रित्वं निर्गुणत्वं निष्क्रयत्वम् ।प्रशस्तपादभाष्य, गुणपदार्थनिरूपण, पृ0 227 उत्क्षेपणादीनां पंचानापि कर्मत्वसम्बन्धः एकद्रव्यत्वं, क्षणिकत्वं मूर्तद्रव्यवृत्तित्वमगुणवत्वं प्रशस्तपादभाष्य, कर्मपदार्थ निरूपण प्रकरण, पृ0 697 (क) रूपिणः पुद्गलाः।- तत्त्वार्थसूत्र, 5/5 (ख) रूपशब्दस्यानेकार्थत्वेऽपि मूर्तिवत्पर्यायग्रहणं, शास्त्रसामर्थ्यात्। ततो रूपं मूर्तिरिति गृह्यते रूपादिसंस्थानपरिमाणो मूर्तिरिति वचनात् ।तत्त्वार्थश्लोकवार्तिकालंकार, श्री जैन संस्कृति संरक्षक संघ, सोलापुर, पुस्तक 6 अध्याय 5 सूत्र 5 पर टीका। परमाणु में वर्ण, गन्ध रस एवं स्पर्श स्वीकृत हैं। भगवती सूत्र एवं अन्य ग्रंथों से यह तथ्य पुष्ट है। शब्दबन्धसौम्यस्थौल्यसंस्थानभेदतमश्छायाऽऽतपोद्द्योतवन्तश्च ।- तत्त्वार्थसूत्र 5/24
SR No.525089
Book TitleSramana 2014 07 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokkumar Singh, Rahulkumar Singh, Omprakash Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2014
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size9 MB
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