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________________ 10 : श्रमण, वर्ष 65, अंक 3-4/जुलाई-दिसम्बर 2014 द्रव्यों में रहते हैं तो मूर्त कहे जाते हैं तथा जब अमूर्त द्रव्यों में रहते हैं तो अमूर्त कहलाते हैं। वैशेषिकों के द्वारा उन्हें मात्र अमूर्त मानने का उसी प्रकार खण्डन हो जाता है, जिस प्रकार रूपादि गुणों को एकमात्र मूर्त मानने का खण्डन होता है। अतः वैशेषिकों द्वारा गुण, कर्म, सामान्य, विशेष, एवं समवाय को मात्र अमूर्त मानना उचित नहीं है, क्योंकि ऐसा स्वीकार करना प्रतीतिविरुद्ध है।18 वैशेषिक दर्शन में सामान्य एक पृथक् पदार्थ है जो नित्य है तथा अनेकों में समवाय संबन्ध से रहता है। यह अपने विषय में सर्वगत होता है तथा अनुवृत्ति प्रत्यय का कारण होता है। जैनदर्शन में इसे पृथक् पदार्थ नहीं मानकर सदृशता का वाचक माना गया है। ‘सामानानां भावः सामान्यम्' के अनुसार जैनदर्शन में समान पदार्थो में समानता का भाव ही सामान्य है। उदाहरण के लिए विभिन्न गायों में रही समानता या सदृशता ही सामान्य है। वैशेषिक ने इसे 'गोत्व' सामान्य से अभिहित किया है, जो अनेक गायों में रहने के साथ नित्य भी है। जैन दार्शनिक इसे अनुगत आकार में कारण तो मानते हैं, किन्तु नित्य नहीं मानते। वे इसे वस्तु या पदार्थ का स्वरूप स्वीकार करते हैं। सामान्य को दो प्रकार का भी माना गया है- तिर्यक् सामान्य एवं ऊर्ध्वता सामान्य । इनमें एक वस्तु की विभिन्न पूर्वापर पर्यायों में सदृशता ऊर्ध्वता सामान्य है तथा विभिन्न वस्तुओं में रही हुई समानता तिर्यक् सामान्य है। यह दोनों प्रकार का सामान्य वस्तु का अपना स्वरूप है, इसे पृथक् पदार्थ मानने की आवश्यकता नहीं है। यह सामान्य यदि मूर्त पदार्थ में रहता है तो उसे मूर्त कहना चाहिए तथा अमूर्त पदार्थ में रहता है तो उसे अमूर्त कहना चाहिए। 'विशेष' नामक पदार्थ जो वैशेषिक दर्शन में पृथक् पदार्थ के रूप में प्रतिपादित है वह अणु, आकाशादि नित्य द्रव्यों में रहता है तथा उनकी अत्यन्तव्यावृत्ति का कारण होता है। ये विशेष अनन्त होते हैं। जैनदर्शन में विशेष को दो द्रव्यों या दो पर्यायों की व्यावृत्ति का हेतु माना गया है। सामान्य जहाँ समानता का द्योतक है वहाँ विशेष व्यावृत्ति या भेद को इंगित करता है। जैनदर्शन में वस्तु का स्वरूप
SR No.525089
Book TitleSramana 2014 07 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokkumar Singh, Rahulkumar Singh, Omprakash Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2014
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size9 MB
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