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________________ 112 : श्रमण, वर्ष 65, अंक 3-4/जुलाई-दिसम्बर 2014 है जिसके अंतर्गत मानक-अमानक रूप, वाग्दोष सुधार तथा भाषा और बोली को नए मानदंडों पर परखने का प्रयत्न किया गया है। इस ग्रन्थ में मुख्य रूप से-1. भारत की भाषाओं में निमाड़ी, 2. निमाड़ी का उदभव एवं विकास, 3. निमाड़ी का स्वरूप, 4. निमाडी की सामान्य विशेषताएँ, 5. निमाड़ी में वर्तनी की समस्या, 6. निमाड़ी वर्णमाला, 7. निषिद्ध ध्वनियाँ, 8. निमाड़ी वर्गों का वर्गीकरण, 9. निमाड़ी स्वर ध्वनियाँ, 10.विचारणीय अशुद्धियाँ,11. देशी-विदेशी भाषाओं के आगत शब्द के अतिरिक्त भाषा विज्ञान के सामान्य सिद्धान्तों के आधार पर निमाड़ी भाषा का अध्ययन किया गया है। प्रस्तुत ग्रन्थ भाषा विज्ञान की दृष्टि से अत्यन्त ही महत्त्वपूर्ण एवं पठनीय है। डॉ0 अशोक कुमार सिंह 2. मानव धर्म, आचार्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज, आगम प्रकाशन 5373 जैनपुरी, रेवाडी (हरियाणा), आशीर्वाद : आचार्य विद्यासागर जी महाराज, सम्पादक: प्रतिष्ठाचार्य विनोद कुमार जैन (रजवांस), संस्करण-पंचम, 2014, मूल्य, 60 रुपये, प्राप्ति स्थान : 1. श्री अजितप्रसाद जैन, 5373, जैनपुरी, रेवाडी, मो0 09896437271, 2. साहित्य सदन, श्री दि. जैन लाल मंदिर जी, चांदनी चौक, दिल्ली – 011-23253638 श्रमण और श्रावक जैन संस्कृति रूपी रथ के दो पहिये हैं। जिस प्रकार श्रमणों के आचार का समग्र निर्देशन करने वाला ग्रन्थराज मूलाचार है उसी प्रकार श्रावकों के आचार को बताने वाला सर्वोच्च ग्रन्थ रत्नकरण्डश्रावकाचार है। इसमें आचार्य समन्तभद्र ने सात अधिकारों में विभक्त 150 श्लोकों के माध्यम से सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यकचारित्र का जो निरूपण किया है वह सर्वातिशयी है। अल्प शब्दों में कहें तो जैन श्रावकाचार का यह आकर ग्रन्थ है। बीसवीं सदी में शुष्क होती संस्कृत काव्यधारा को पुनरुज्जिवित करने वाले "जयोदय महाकाव्य" जैसी कालजयी कृति लिखकर संस्कृत महाकाव्यों की वृहत्त्रयी को वृहच्चतुष्टयी बनाने पर आचार्य ज्ञानसागर
SR No.525089
Book TitleSramana 2014 07 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokkumar Singh, Rahulkumar Singh, Omprakash Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2014
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size9 MB
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