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सम्पादकीय
इस अंक में जैन अंग साहित्य में वर्णित उद्योग-धन्धे डॉ० अनुराधा सिंह एवं सुदीप कुमार रंजन, जैन अभिलेखों का वैशिष्ट्य डॉ० अरुण प्रताप सिंह एवं परम्परा में बाहुबलि, डॉ० शान्ति स्वरूप सिन्हा, दलितोद्धारक आचार्य तुलसी- एक अन्तरावलोकन, ओम प्रकाश सिंह, Jain Studies through Indian Antiquary - Dr. Navin Kumar Srivastava और जैन रस बोध में धर्मीय भावादर्श तथा Jain Prasasti Literature मेरे द्वारा लिखित है।
मुख पृष्ठ पर दिया गया चित्र प्रशान्त रस के उदाहरण के रूप में उपप्रवर्तक श्री अमरमुनि द्वारा सम्पादित सचित्र अनुयोगद्वारासूत्र (पद्मप्रकाशन, दिल्ली) से लिया गया है हम उनके प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करते हैं । शान्त रस, जिसे उक्त कृति में प्रशान्त रस कहा गया है, का सर्वप्रथम लक्षण, उदाहरण प्ररूपित करने का श्रेय आर्यरक्षित को दिया जा सकता है। उनके द्वारा रचित अर्धमागधी आगम अनुयोगद्वार में प्रशान्त का लक्षण एवं उदाहरण पाया जाता है।
इस समय पूरा भारत प्रजातंत्र 2014 का महापर्व मना रहा है। इस पूरे परिवेश में भगवान महावीर प्रवर्तित भाषा समिति - सम्यग्भाषा, जिससे अभिप्राय सत्य, हितकारी, परिमित और सन्देहरहित भाषण से है, साथ ही वचन गुप्ति - वाचिक क्रिया के प्रत्येक प्रसङ्ग पर या तो वचन का पालन - नियमन करना या मौन धारण करना इन दोनों नियमों का पालन करना अत्यन्त आवश्यक हो जाते है। भगवान महावीर की वचन गुप्ति असत्यचनों में प्रवृत्ति का निषेध करती है तो भाषा समिति में सत् वचनों में प्रवृत्ति अपेक्षित है। संचार के माध्यमों की व्यापक और सहज उपलब्धता की स्थिति में वाक् संयम का महत्त्व इतना अधिक बढ़ गया है जितना शायद कभी नहीं था। महावीर जयन्ती के अवसर पर सभी को हार्दिक बधाइयाँ ।
डॉ० अशोक कुमार सिंह