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________________ 38 : श्रमण, वर्ष 65, अंक 1/जनवरी-मार्च 2014 अभिनन्दन) के साथ त्रितीर्थी मूर्ति में अंकन किया गया है, जो पुनः बाहुबली की तीर्थंकर के समकक्ष प्रतिष्ठा का प्रतीक है। साथ ही एलोरा और देवगढ़ (मन्दिर संख्या २) की मूर्तियों में बाहुबली के चरणों के पास हाथ जोड़े भरत चक्रवर्ती का अंकन आध्यात्मिक सत्ता के चरणों में राजसत्ता के नमन का मार्मिक निरूपण है। आज के जीवन और व्यवहार में भी राजसत्ता के सामने आध्यात्मिक सत्ता की श्रेष्ठता को देखा जा सकता है। सन्दर्भ : एम० एन० पी० तिवारी एवं एस०एस०सिन्हा, धार्मिक सामंजस्य का दर्पण खजुराहो का पार्श्वनाथ मन्दिर, जिन-ज्ञान, (सम्पा०) द्विवेदी एवं जैन, मुजफ्फरपुर २००७, पृ० २१४-२०" पउमचरियं, ४/५४-५५, हरिवंशपुराण, ११.९८-१०२, आदिपुराण, ३६.१०६१८५ एवं त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र, ५.७४०-७९८. आदिपुराण, ३६.१०६ लतां व्यवपनयन्तीभ्यां खेचरीभ्यां नमौ मुनि। हरिवंशपुराण, ११.१०१ विद्याधर्यः कदाचिच्च क्रीडाहेतोरूपागताः। वल्लीरूध्देष्टामासुः मुनेः सर्वांगसंगिनीः।। आदिपुराण, ३६.१८३ एम० एन० पी० तिवारी, खजुराहो का जैन पुरातत्त्व, खजुराहो, पृ० ६७-६९. नाग्न्यं नाम परं तपः ॥ आदिपुराण, ३६.११७ महिन्मा शमिनः शान्तमित्यभत्तश्च काननम्। धत्ते हि महतां योगः शममप्यशमात्मसु।। आदिपुराण, ३६.१७७ त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र, ५.७४०-९८, आदिपुराण ३६.१७१-७६ ज्ञानं हि तपसो मूलं यद्वन्मूलं महातरोः, आदिपुराण, ३६.१४८ एम०एन०पी० तिवारी एवं एस०एस० सिन्हा, जैन कला तीर्थः देवगढ़ वाराणसी, २००२, पृ० १०५-१०९ अहिंसाशुद्धिरेषां स्याद् ये निःसड्गा दयालवः। आदिपुराण, ३९.३० स्थायुक हि यशो लोके गत्वों ननु सम्पदः। आदिपुराण, ३६.११७ जैन कला तीर्थ देवगढ़, पृ० १०९ चित्र-सूची १. बाहुबली, गुफा सं० ४, बादामी ६०० ई० २. बाहुबली, जैन गुफा, अयहोल, सातवीं शती ई० का प्रारंभ ३. बाहुबली, मन्दिर सं० ११, देवगढ़ १२ वी शती ई० १२.
SR No.525087
Book TitleSramana 2014 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokkumar Singh, Omprakash Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2014
Total Pages80
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size10 MB
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