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________________ जैन कला एवं परम्परा मे बाहुबली: आदर्श एवं यथार्थ की पृष्ठभूमि : 35 वल्लरियों से घिर गया, जिसमें विभिन्न पक्षियों ने अपने घोसले बना दिए थे। उनके चरण वर्षा के कीचड़ में फंस गये थे। सर्प उनके शरीर से लटक रहे थे, ये सर्प उनके हजार भुजाओं वाले होने का आभास देते थे। वाल्मीक से ऊपर उठते सर्प चरण के समीप नूपुर की तरह बँधे थे। शरीर पर वृश्चिक एवं छिपकली जैसे जन्तु निश्चिन्त भाव से विचरण कर रहे थे। इस प्रकार बाहुबली के शरीर पर लता-वल्लरियों का लिपट जाना और शरीर के विभिन्न भागों पर सर्प, वृश्चिक, छिपकली आदि का प्रदर्शन तथा ध्यान-निमग्न बाहुबली का इन सबसे अप्रभावित रहना, उनकी तपस्या की गहनता को व्यक्त करता है। आदिपुराण में इस दृढ़ तपस्या के मूल में आदर्श की स्थापना के रूप में ज्ञान की प्राप्ति का उल्लेख इसे और सारगर्भित बनाता है। साथ ही यह सन्दर्भ मनुष्य और पर्यावरण के पारस्परिक अस्तिव का भी प्रतीक है। बाहुबली की कठिन तपश्चर्या के कारण ही कला में उन्हे तीर्थकारों के समान प्रतिष्ठ प्रदान की गयी। इस सन्दर्भ को और व्याख्यायित करते हुए आदिपुराण में अहिंसा भाव की व्याख्या करते हुए बताया गया है कि अहिंसा की शुद्धि उनसे ही होती है जो परिग्रहरहित और दयालु होते है। त्याग, साधना, अपरिग्रह ही यश का मूल है, सम्पत्ति कालक्रम में नष्ट हो जाने वाली है जबकि यश सदैव स्थिर रहने वाला है। उपर्युक्त पारम्परिक पृष्ठभूमि के आधार पर ही विभिनन क्षेत्रों में छठी-सातवीं शती ई० से १९ वीं शती ई० के मध्य बाहुबली की अनेक मूर्तियां बनीं, दोनों ही परम्पराओं की मूर्तियों में बाहुबली को कायोत्सर्ग मुद्रा में दिखाया गया है। श्वेताम्बर स्थलों पर बाहुबली अधोवस्त्र युक्त है जबकि दिगम्बर स्थलों पर निर्वस्त्र हैं। श्वेताम्बर परम्परा की बाहुबली मूर्तियाँ दिगम्बर परम्परा की तुलना में अत्यल्प हैं। १४ वीं शती ई० की एक श्वेताम्बर मूर्ति गुजरात की पहाड़ी पर है। १५वीं शती ई० की एक श्वेताम्बर मूर्ति गुजरात की जय पहाड़ी पर है। १५वीं शती ई० की एक मूर्ति जैसलमेर से भी मिली है। ऋषभनाथ के जीवन दृश्यों के अंकन के प्रसंग में भी कुछ श्वेताम्बर स्थलों पर भरत-बाहुबली युद्ध और बाहुबली की कायोत्सर्ग-मुद्रा में खड़ी मूर्तियां बनी। इनमें गुजरात में कुम्भारिया स्थित शान्तिनाथ एवं महावीर मन्दिरों (११वीं शती ई०) तथा राजस्थान स्थित विमलवसही (लगभग ११५० ई०) के वितानों की आकृतियां मुख्य हैं। इन उदाहरणों में श्वेताम्बर परम्परा के अनुरूप ही बाहुबली के दोनों ओर नमस्कार मुद्रा में ब्राह्मी एवं सुन्दरी की आकृतियां भी निरूपित हैं।
SR No.525087
Book TitleSramana 2014 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokkumar Singh, Omprakash Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2014
Total Pages80
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size10 MB
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