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अनेकान्तवाद : उद्भव और विकास : 23
और दोष एवं आवरण से रहित ज्ञानवान स्याद्वादी आपके लिए हमारा नमस्कार है।
जैन ग्रंथों में क्रियावाद, अक्रियावाद, अज्ञानवाद तथा वैनयिकवाद के अंतर्गत ३६३ मतों का उल्लेख मिलता है, यथा
असिदिसदं किरियाणं अक्किरियाणं च तह चुलसीदी। सतसट्ठी अण्णाणी वेणइयाणं च बत्तीसा । *
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क्रियावादियों के १८०, अक्रियावादियों के ८४, अज्ञानवादियों के ६७ और विनयवादियों के ३२ इस प्रकार सब मिलाकर ३६३ भेद मिथ्यावादियों के होते हैं।
भगवान् महावीरकालीन दार्शनिक मतों को जानने के लिए आगम ही एकमात्र साधन है। पालि साहित्य (दीर्घनिकाय) में महात्मा बुद्ध के समकालीन छः तीर्थंकरों का उल्लेख आता है- पूरणकस्सप, मक्खलिगोसाल, अजित केसकम्बलि, पकुधकच्चायन, संजयवेलट्ठिपुत्त तथा निगण्ठनातपुत्त (महावीर)। इसके अतिरिक्त और भी छोटे-मोटे शास्ता थे, जो अपने सिद्धान्तों को समाज में प्रचलित कर रहे थे । ब्रह्मजालसुत्त के ६२ दार्शनिक मत इस प्रसंग में उल्लेखनीय हैं। इन्हें वहाँ गंभीर और दुर्जेय कहा गया है।
भगवान् महावीर को केवलज्ञान होने से पहले दस महास्वप्नों का दर्शन हुआ था, उनका उल्लेख भगवतीसूत्र में आया है।" इन स्वप्नों में से तीसरे स्वप्न का फल यह है कि भगवान् महावीर विचित्र ऐसे स्व- पर सिद्धान्त को बताने वाले द्वादशांग का उपदेश देंगे। पं० दलसुख मालवणिया के अनुसार पुंस्कोकिल की पाँख को बताने वाले द्वादशांग का उपदेश देंगे। पुंस्कोकिल की पाँख को चित्र - विचित्र कहने का और आगमों को विचित्र विशेषण देने का खास तात्पर्य तो यही मालूम होता है कि उनका उपदेश अनेकरंगी - अनेकान्तवाद माना गया है। चित्रविचित्र विशेषण से सूत्रकार ने यही ध्वनित किया है। ऐसा निश्चय करना