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तीर्थंकर शान्तिनाथ का जीवन चरित - साहित्य, कला एवं
परम्परा में ऐसी ही कथा रामायण एवं महाभारत तथा बौद्ध परम्परा में शिवि जातक' में कुछ अन्तर भेद के साथ वर्णित है। यहाँ हम तुलनात्मक अध्ययन की दृष्टि से केवल महाभारत की कथा का ही उल्लेख कर रहे हैं।
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महाभारत की कथा° (वन पर्व, तीर्थयात्रा पर्व, अध्याय १३१, श्लोक १-३१) के अनुसार चन्द्रवंशीय चक्रवर्ती सम्राट महाराज शिवि के धर्माचरण की परीक्षा लेने हेतु इन्द्र बाज और अग्नि कपोत के रूप में प्रकट हुए। बाज से अपनी प्राणरक्षा की याचना करता हुआ कपोत महाराज शिवि की गोद में जा छिपा । त्रि०श०पु०च० वर्णित मेघरथ की कथा में भी कपोत के राजा की गोद में शरण लेने का उल्लेख हुआ है। बाज ने कपोत पर अपना अधिकार मानते हुए राजा से कपोत को छोड़ने का आग्रह किया, परन्तु शिवि ने कपोत की प्राणरक्षा का वचन दिया था। इसलिए उन्होंने कहा “अभय चाहने वाले को आश्रय देना उनका परम धर्म है” ११ साथ ही शरणागत की रक्षा का महत्त्व बताते हुए यह भी कहा कि “शरणागत हुए को त्यागना ब्राह्मण और गौ हत्या के समान है १२ महत्त्वपूर्ण है। जैन कथा से अन्तरभेद की दृष्टि से यहाँ बाज की क्षुधापूर्ति हेतु राजा द्वारा शूकर, मृग अथवा भैंसे के मांस देने का प्रस्ताव भी ध्यातव्य है।१३ अन्त में बाज द्वारा कपोत के बदले अन्य कुछ भी न स्वीकार किया जाना और उसके स्थान पर राजा शिवि के स्वयं के मांस का कपोत के वजन के बराबर तुला द्वारा अर्पण करना१४, जैन कथा से साम्य रखता है। यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि प्रस्तुत कथा में बाज स्वयं ही महाराज शिवि का मांस मांगता है १५ जबकि जैन कथा में मेघरथ स्वयं ही अपने मांस के अर्पण का प्रस्ताव करते हैं । १६ महाभारत की इस कथा में शिवि द्वारा यह कहा जाना कि तुम मेरा मांस मांग रहे हो, इसे मैं अपने ऊपर तुम्हारी कृपा मानता हूँ ७, कई दृष्टियों से महत्त्वपूर्ण है। शेष कथा कमोबेश यथावत है । अन्त में इन्द्र और अग्नि देव अपने वास्तविक रूप को प्रकट कर शिवि के कीर्ति एवं यश का आशीर्वाद प्रदान करते हैं। "