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102 : श्रमण, वर्ष 64, अंक 2 / अप्रैल-जून 2013 अर्थशास्त्र में १५ अधिकरण, १८० प्रकरण, १५० अध्याय, ३८० कारिकायें और इसमें श्लोक एवं गद्यांश की संख्या लगभग ६००० अनुष्टुप् श्लोक हैं। लघ्वहनीति के आकार को देखते हुए इसके अध्याय और कारिका उपवर्गीकरण की आवश्यकता नहीं थी। अर्हन्त्रीति के प्रथम अधिकार के एकमात्र प्रकरण के आरम्भ में प्रथम तीर्थङ्कर ऋषभदेव और अन्तिम तीर्थकर भगवान महावीर की वन्दना की गई है। बाईस प्रकरणों का आरम्भ द्वितीय से लेकर तेईसवें तीर्थङ्कर की स्तुति से किया गया है। राजा श्रेणिक द्वारा महावीर से यह प्रश्न पूछने पर कि राजाओं के नीति मार्ग का प्रणेता कौन है। वे आदि तीर्थङ्कर ऋषभदेव को इसका प्रणेता बताते हैं। प्रथम चक्रवर्ती भरत ने उसी के आधार पर शासन के लिए आचार्य वेद चतुष्क की रचना की। परन्तु कालान्तर में वह नष्ट हो गया। मगध सम्राट श्रेणिक द्वारा पूछे गये प्रश्नों के उत्तर में अन्तिम तीर्थङ्कर महावीर द्वारा दिये गये उत्तर के आधार पर प्रस्तुत शास्त्र का निरूपण किया गया है। समय बीतने के साथ सुविधि आदि तीर्थङ्करो के काल में मिथ्यात्वियों (जैनेतरों) द्वारा अङ्गीकार करने से हिंसा आदि से दोषयुक्त होकर वह (शास्त्र) भ्रष्ट हो गया। इसलिए श्रेष्ठ पुरुषों द्वारा उसे छोड़कर पूर्व आचार्यों द्वारा रचित अनेक ग्रन्थ जो पृथ्वी तल पर अब भी विद्यमान है, उनका आश्रय लेकर लोक-व्यवहार का आचरण किया जाता है। आचार्य हेमचन्द्र के अनुसार राजा श्रेणिक के प्रश्नों का जिस प्रकार भगवान महावीर समाधान किया उसी का निरूपण अर्हन्नीति में किया गया है। कालिकाल सर्वज्ञ द्वारा ९१८ संस्कृत श्लोकों में विरचित कृति लघ्वर्हनीति चार अधिकारों में वर्गीकृत है। इसके चारों अधिकारों का शीर्षक -१. भूमिका-भूपाल-गुणवर्णन, २. युद्ध तथा दण्डनीति, ३. व्यवहार अधिकार और ४. प्रायश्चित है। प्रथम और चतुर्थ अधिकार में एक-एक प्रकरण हैं, युद्ध तथा दण्डनीति शीर्षक दूसरे अधिकार में दो प्रकरण हैं। जबकि तीसरे व्यवहार अधिकार में उन्नीस प्रकरण हैं। इसके प्रथम प्रकरण में व्यवहार मार्ग का स्वरूप और व्यवहार मार्ग के अठारह भेदों का वर्णन किया गया है। इसके अठारह भेदों का शीर्षक और क्रम इस प्रकार हैं- १. ऋणादान स्वरूप, २. सम्थ्योत्थान, ३. देयविधि, ४. दायभाग, ५. सीमाविवाद, ६. वेतनादान, ७. क्रयेतरानुसन्ताप, ८. स्वामिभृत्य विवाद, ९. निक्षेप, १०. अस्वामिविक्रय, ११. वाक्यपारुष्य, १२. समय-व्यतिक्रम, १३. परस्त्रीग्रहण, १४. द्यूत, १५. स्तैन्य, १६. साहस, १७. दण्डपारुष्य और १८. स्त्री-पुरुष धर्म।