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________________ vii: श्रमण, वर्ष 64 अंक 1 / जनवरी-मार्च 2013 मुखपृष्ठ - चित्र - परिचयः तीर्थङ्कर नेमिनाथ का जन्म कल्याणक मनाती हुईं ५६ दिक्कुमारियाँ । तीर्थङ्कर नेमिनाथ (अर्हत् अरिष्टनेमि ) को जैन शास्त्रों में श्रीकृष्ण का चचेरा भाई . बतलाया गया है। कार्तिक कृष्णा त्रयोदशी के दिन अपराजित नामक देवलोक से तैंतीस सागरोपम आयु पूर्ण कर अर्हत् अरिष्टनेमि का जीव जम्बूद्वीप के भारतवर्ष क्षेत्र के शौर्यपुर (सौरीपुर) नगर के राजा समुद्रविजय की भार्या शिवादेवी की कुक्षि में मध्यरात्रि के समय चित्रा नक्षत्र में गर्भ में अवतरित होता है। गर्भ-कल्याणक के पश्चात् नौ मास पूरे होने पर वह जीव श्रावण शुक्ला पंचमी को चित्रा नक्षत्र में माता की कुक्षि से जन्म लेता है। जन्म (जन्म-कल्याणक) के समय ५६ दिक्कुमारियाँ (देवलोक की युवा देवियाँ ) देवराज सौधर्म इन्द्र की आज्ञा से माता की सेवा में उपस्थित होती हैं। इस चित्र में सूतिका कर्म आदि करती हुई दिक्कुमारियाँ, पर्यङ्कासनस्थ बालरूप अरिष्टनेमि तथा माता शिवादेवी दिख रही हैं। ऊपर देवलोक के देवगण प्रसन्नतापूर्वक स्तुति करते हुए दिखाई पड़ रहे हैं। अरिष्टनेमि का जन्म होने पर इन्द्र-पत्नी शची बालक को सूतिका गृह से बाहर लाकर तथा मायावी पुत्र को माता के पास रखकर इन्द्र को देती हैं। तत्पश्चात् देवों के साथ इन्द्र सुमेरु पर्वतशिखर पर जाकर उनका जन्मकृत जलाभिषेक करते हैं। अनन्तर अरिष्टनेमि ३००वर्षों तक गृहस्थाश्रम में रहकर रैवतक पर्वत पर हजार पुरुषों के साथ जिनदीक्षा ले लेते हैं। जिनदीक्षा के पूर्व श्रीकृष्ण राजीमती के साथ उनके विवाह का आयोजन करते हैं। परन्तु विवाह में भोज हेतु पिंजड़ों में बन्द पशुओं के आर्तनाद को सुनकर वे विवाह करने से मना कर देते हैं। राजीमती भी जिनदीक्षा ले लेती हैं। अरिष्टनेमि गिरनार पर्वत की चोटी पर स्थित बाँस के वृक्ष के नीचे ध्यान करते हुए चित्रा नक्षत्र में केवलज्ञानी होकर अर्हत् हो जाते हैं (केवलज्ञान कल्याणक)। कुछ कम सात सौ वर्षों तक केवल ज्ञानी अर्हत् (जीवन्मुक्त) रहने के बाद १००० वर्ष की आयु पूर्ण होने पर आषाढ़ शुक्ल अष्टमी के दिन गिरनार पर्वत से मोक्ष (सिद्धत्व या निर्वाण ) को प्राप्त हुए (निर्वाण कल्याणक ) । तब से गिरनार पर्वत भगवान् नेमिनाथ की निर्वाण भूमि के रूप में पूज्य हो गई। (देखें, श्री कल्पसूत्र, पृष्ठ १५६) प्रो. सुदर्शन लाल जैन
SR No.525083
Book TitleSramana 2013 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2013
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size14 MB
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