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________________ ..... 15 विन्ध्य क्षेत्र के दिगम्बर जैन तीर्थ में इस युग में विविध स्थानों पर जैन धर्म के सबल केन्द्र रहे। भरहुत स्तूप जैसी विश्वविश्रुत कलाकृति इसी क्षेत्र की देन है। खजुराहो के कलायतन इसी भूमि की उपज हैं। इतना ही नहीं, पुरातन सामग्री के अवशेष जहां भी मिलते हैं वहां जैन सामग्री का बड़ा भाग उपलब्ध है। यहां के कई मकानों की दीवारों, फर्शों और सीढ़ियों में जैन पुरातत्त्व का स्वच्छन्द उपयोग मिलता है। इस क्षेत्र में अनेक मूर्तियां खेत की जुताई करते समय भूगर्भ से निकली हुई सुनी जाती हैं। देवतालाब, मऊ, नागोद, जसो, नचना, उचहरा, मैहर, अजयगढ़, पन्ना, सतना, खजुराहो तथा उनके निकटवर्ती स्थानों पर जैन अवशेषों के ढेर इस बात के साक्षी हैं कि यह सम्पूर्ण भूभाग कभी जैनों का केन्द्र रहा होगा। खजुराहो के ६४ योगिनी मन्दिर की प्रमिति और देवकुलिकाओं को देखकर फर्गुसन ने लिखा है कि मन्दिर निर्माण की यह रीति जैनों की अपनी विशेषता है, अतः मूलतः इसके जैन होने में मुझे तनिक भी सन्देह नहीं है। दिगम्बर परम्परा में बाहुबली की मूर्तियों का प्रचलन प्राचीन काल से चला आ रहा है। विन्ध्य प्रदेश तथा महाकोशल में बाहुबली की मूर्तियां तीर्थंकर मूर्तियों के साथ भी अंकित मिलती हैं। इस क्षेत्र का रीवा एक ऐसा स्थान है जहां कलावशेषों की सामग्री अनेक मकानों में लगी है। उन अवशेषों से कई नये मन्दिर बन गये हैं। रीवा लक्ष्मण बागवाले नूतन मन्दिर का निर्माण गुर्गी के कलापूर्ण अवशेषों से हुआ है। रीवा के कुछ पुरावशेष व्यंकट विद्या सदन में सुरक्षित हैं। के विन्ध्य प्रदेश के तीर्थों का जहां तक सम्बन्ध है, उनके मन्दिरों, मूर्तियों और अन्य पुरातत्त्व शिल्प सामग्री के आनुमानिक निर्माण काल का विभाजन इस प्रकार किया जा सकता है ५वीं से ८वीं शताब्दी तक - तुमैन (खनियाधाना के निकट) में गुप्त सं० ११६ (सन् ४३५) का एक अभिलेख उपलब्ध हुआ है जिसमें एक हिन्दू मन्दिर के निर्माण का उल्लेख है। इस आधार पर यह अनुमान लगाया जा सकता है कि इसी काल में यहां जैन मन्दिर और मूर्तियों की प्रतिष्ठा प्रारम्भ हुई होगी। ९वीं - - १० ०वीं शताब्दी - खजुराहो के घंटई मन्दिर और पार्श्वनाथ मन्दिर क निर्माण १० वीं शताब्दी में हुआ था । पतियानदाई में गुप्तकाल अथवा ९वीं - १०वीं शताब्दी का अम्बिका देवी का मन्दिर जीर्णशीर्ण अवस्था में प्राप्त होता है। इसमें २४ जैन देवियों की मूर्तियां एक शिलाफलक में उत्कीर्ण हैं तथा उनके मध्य में अम्बिका देवी की मूर्ति है। ११वीं - १२वीं शताब्दी की जैन मूर्तियाँ- विन्ध्य प्रदेश में सर्वाधिक जैन मूर्तियां १ १वीं
SR No.525083
Book TitleSramana 2013 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2013
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size14 MB
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