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________________ विन्ध्य क्षेत्र के दिगम्बर जैन तीर्थ तथा उनके सांस्कृतिक प्रदेय डॉ० श्रीप्रकाश पाण्डेय विन्ध्य क्षेत्र के सिहौनिया, ग्वालियर, मनहरदेव, सोनागिरी आदि २४ तीर्थक्षेत्रों का परिचय इस आलेख में दिया गया है। लेखक ने विन्ध्य को कहीं-कहीं मध्यप्रदेश और कहीं-कहीं बुंदेलखण्ड के साथ सम्मिलित किया है और कहीं-कहीं पृथक् करके भी दिखलाया है। लेखक ने मध्यप्रदेश को चार जनपदों मे बांटा है-१. चेदि २. सुकोशल ३. दशार्ण-विदर्भ तथा ४. मालव अवन्ती जनपद। चेदि को आपने बुंदेलखण्ड का भाग माना है। विन्ध्य में स्थित तीर्थक्षेत्रों को आपने दिगम्बरों के बतलाये हैं तथा उनका धार्मिक और पुरातात्त्विक महत्त्व भी स्वीकार किया है। -सम्पादक विश्वधर्म एवं संस्कृतियों के इतिहास में जैन धर्म का एक विशिष्ट स्थान है। वैचारिक उदारता, दार्शनिक गम्भीरता, लोकमंगल की उत्कृष्ट भावना, प्रगतिशीलता, सार्वजनीनता, विपुल साहित्य तथा उत्कृष्ट शिल्प की दृष्टि से विश्वधर्मों के इतिहास में इसका अवदान महत्त्वपूर्ण है। चूंकि भारतीय संस्कृति ब्राह्मण और श्रमण संस्कृति का समन्वित रूप एक संश्लिष्ट संस्कृति रही है अत: हम उसे किसी चहारदीवारी में बांधकर सम्यक् रूप से उसका अध्ययन नहीं कर सकते। संस्कृति की परिधि काफी व्यापक होती है। इसलिये भारत देश के किसी एक प्रदेश की संस्कृति को जानने के लिये, समझने के लिये हम भले ही उसे किसी क्षेत्र तक सीमित कर दें किन्तु समग्र भारतीय संस्कृति तो विभिन्न धाराओं एवं विभिन्न क्षेत्रों की मिलीजुली संस्कृति है। एक क्षेत्र का दूसरे क्षेत्र पर प्रभाव तो अवश्यम्भावी होता है और इसीलिये सभी क्षेत्रों का अन्तःसम्बन्ध उस संस्कृति को पूर्णता प्रदान करता है। इतिहास की दृष्टि से देखें तो मोहनजोदड़ो और हड़प्पा के उत्खनन से जिस भारतीय संस्कृति की जानकारी हमें होती है उससे यह स्पष्ट है कि वैदिक संस्कृति के पूर्व भी भारत में एक उच्च संस्कृति का अस्तित्व था जिसमें तप, ध्यान आदि पर बल दिया जाता था। इस उत्खनन में प्राप्त ध्यानस्थ योगियों की सीलें प्रकारान्तर से जैन संस्कृति के उस समय के अस्तित्व को प्रमाणित करती हैं। जैन आगम साहित्य के प्राचीनतम ग्रन्थ ऋषिभाषित (ई० पूर्व चौथी शताब्दी) के अनुशीलन से पता चलता है कि उस समय जैनधर्म सम्प्रदाय के रूप में विकसित नहीं हुआ था क्योंकि इस
SR No.525083
Book TitleSramana 2013 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2013
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size14 MB
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