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________________ १. जैन कला और परम्परा की दृष्टि से काशी का वैशिष्ट्य :7 चौमुखी मूर्ति (क्रमांक ८५) में चार अलग-अलग तीर्थङ्करों को कायोत्सर्ग में दिखायो गया है। वृषभ, गज, मृग (?) एवं सिंह लांछनों के आधार पर उनकी पहचान ऋषभनाथ, अजितनाथ, शान्तिनाथ (?) और महावीर से की जा सकती है। सारनाथ संग्रहालय में विमलनाथ के शूकर लांछन युक्त ९वीं-१०वीं शती की एक कायोत्सर्ग दिगम्बर मूर्ति भी सुरक्षित है। इस तरह जैन कला की दृष्टि से काशी का पुरातन सम्बन्ध है तथा कई दृष्टियों से महत्त्वपूर्ण है। सन्दर्भ : कमलगिरि, मारुतिनन्दन प्रसाद तिवारी एवं विजय प्रकाश सिंह, काशी के मन्दिर और मूर्तियां, अध्याय ९, जैन मन्दिर और मूर्तियां, वाराणसी, १९९८, पृ. ७-१०३। मारुतिनन्दन प्रसाद तिवारी, एलिमेन्ट्स ऑव जैन आइकानोग्राफी, वाराणसी, १९८३, पृ. १-३३ एवं ४४। जिनप्रभसूरीकृत विविध तीर्थकल्प, सम्पा.- मुनि श्री जिनविजय, सिंघी जैनग्रन्थ माला-१०, कलकत्ता, मुम्बई, १९३४; मोतीचन्द्र, काशी का इतिहास(द्वितीय संस्करण),वाराणसी, १९८५, पृ. १९८। कमलगिरि, मारुतिनन्दन प्रसाद तिवारी एवं विजय प्रकाश सिंह, पूर्वोक्त, पृ. ९९। प्रतिष्ठासार संग्रह ५.६७-७१, प्रतिष्ठासारोद्धार ३.१.७४, मारुतिनन्दन प्रसाद तिवारी, जैन प्रतिमा विज्ञान, वाराणसी,१९८१, पृ. २३५-३६। प्रतिष्ठासार संग्रह, ५.३०। । मारुतिनन्दन प्रसाद तिवारी, 'काशी की जैन कला', उत्तर-प्रदेश पत्रिका (सम्पा.- डॉ. कौशल कुमार राय), १९८४, द्वितीय खण्ड, पृ. २२-२४। चित्रसूची : Mahavira. varanasi.65Corntury A.D. चित्र-१ : महावीर, वाराणसी, भारत कला भवन (क्रमांक १६१), छठी शती ई.।
SR No.525083
Book TitleSramana 2013 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2013
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size14 MB
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