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________________ जैन कला और परम्परा की दृष्टि से काशी का वैशिष्ट्य : 5 देवियों का अंकन है, जिनमें से एक स्पष्टत: ऋषभनाथ की यक्षी चक्रेश्वरी हैं, जिन्हें मानवदेहधारी गरुड़ पर आरूढ़ और वरदमुद्रा, चक्र, गदा तथा शंख धारण किये हुए निरूपित किया गया है। अन्य दो देवियों में से एक दो गजों से अभिषिक्त अभिषेक लक्ष्मी हैं, जिनके ऊर्ध्वकरों में पद्म प्रदर्शित हैं, जबकि नीचे का दाहिना हाथ वरदमुद्रा में है और बायें में फल है। तीसरी देवी नेमिनाथ की यक्षी अम्बिका हैं। दिगम्बर परम्परा के शिल्पशास्त्रों के अनुरूप अम्बिका के दाहिने हाथ में आम्रलुम्बि है, जबकि बायें हाथ में गोद में बैठा बालक देखा जा सकता है। इस विलक्षण मूर्ति में ऋषभनाथ की यक्षी के साथ ही गजलक्ष्मी और अम्बिका का अंकन ऋषभनाथ के महत्त्व को प्रकट करता है। ऋषभनाथ की ऐसी ही कुछ मूर्तियां देवगढ़ (मंदिर संख्या २), उरई (जालौन, राज्य संग्रहालय, लखनऊ), खुजराहो (जार्डिन संग्रहालय, शांतिनाथ संग्रहालय, खजुराहो) से भी प्राप्त हैं। दसवीं शती ई. के अन्त की नेमिनाथ की एक ध्यानस्थ प्रस्तर मूर्ति भदैनी के (१९वीं शती ई.) दिगम्बर जैन मन्दिर में सुरक्षित है। पीठिका पर लांछन के रूप में शंख के साथ ही एक ओर धन का थैला धारण करने वाले कुबेर यक्ष और दूसरी ओर आम्रलुम्बि धारिणी अम्बिका की आकृतियां उकेरी हैं। स्वतंत्र मूर्तियों की दृष्टि से भेलूपुर के पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन मन्दिर की सं. १५४८ (१४९१ ई.) की पद्मावती यक्षी की दो मूर्तियां विशेषत: उल्लेखनीय हैं। ये मूर्तियां राजस्थान के जीवराज पापड़ीवाल द्वारा स्थापित की गई हैं जिन्होंने अनेक महत्त्वपूर्ण जैनपुरास्थलों पर असंख्य मूर्तियों का निर्माण करवाया। पद्मावती यक्षी के निरूपण में स्पष्टत: दिगम्बर ग्रन्थों की परम्परा का पालन किया गया। एक उदाहरण में यक्षी दोनों पैर मोड़कर और दूसरे में लीलासन में बैठी हैं। चतुर्भुजा पद्मावती के मस्तक के ऊपर सर्पफणों का छत्र दिखाया गया है, जिसके ऊपर सात सर्पफणों के छत्र वाली पार्श्वनाथ की ध्यानस्थ मूर्ति भी उकेरी है। एक मूर्ति में यक्षी के आसन के समीप उनके पारम्परिक वाहन कुक्कुट को भी दिखाया गया है। पद्मासीन यक्षी के तीन हाथों में पद्म, अंकुश और पद्म स्पष्ट हैं जबकि दूसरे उदाहरण में तीन हाथों में अंकुश, पद्म और अक्षमाला प्रदर्शित है। प्रतिष्ठासारसंग्रह एवं प्रतिष्ठासारोद्धार में कुक्कुट या कुक्कुट सर्पवाहन वाली पद्मावती का चतुर्भुजी, षड्भुजी और चतुर्विंशतिभुजी स्वरूपों में ध्यान किया गया है। तीन सर्पफणों के छत्र वाली पद्मावती के मुख्य आयुध अंकुश, पद्म, अक्षसूत्र और पाश बताये गये हैं।" भदैनी के सुपार्श्वनाथ दिगम्बर जैन मन्दिर (१९वीं शती ई.) के गर्भगृह के बाहर की
SR No.525083
Book TitleSramana 2013 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2013
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size14 MB
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