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________________ लोकानुप्रेक्षा में वास्तुविद्या : 31 की तरह गर्म, तेजयुक्त होता है जिस कारण वह जिस स्थान में रहता है, उस स्थान को भी अपने तेज से गर्म कर देता है जिसे आग्नेय विदिशा के नाम से भी जाना जाता है तथा इसमें भोजनशाला विद्युत उपकरण अग्नि संबंध भी कार्य करने का निर्देश दिया गया है। यदि दूसरे पक्ष से देखें तो प्राकृतिक कारण भी नजर आता है। तिलोयपण्णत्ती के अनुसार सूर्य का विमान अर्द्धचन्द्राकार है। जिससे सूर्यकान्त मणि के कारण प्रातः सबसे पहले सूर्य अपनी किरण से ऐशान, पूर्व तथा आग्नेय दिशा-विदिशा को प्रभावित करता है। तल भाग से अग्नि इन्द्र के स्वभाव के कारण से पृथ्वी का आग्नेय कोण तप्त रहता है तथा ऊपर से सूर्य की तप्त किरणें उसे तप्तायमान कर देती हैं जिससे उसका ऊष्णपना सदैव बना रहता है। दक्षिण दिशा पूर्व दिशा के दाएं भाग को दक्षिण दिशा कहतें हैं। दक्षिण दिशा से ही सूर्य अपना चक्कर लगाना प्रारम्भ करता है। इस कारण वह दक्षिणायन होता है तथा जिनमन्दिर में भी पूर्व से दक्षिण की ओर होकर परिक्रमा लगायी जाती है। घूमने वाले जितने भी उपकरण हैं वह दक्षिण की ओर से ही प्रदक्षिणा देते हैं। वास्तव में प्रकृति का चक्र ही दक्षिणावर्त है, सूर्य का भ्रमण इसका सबसे बड़ा प्रमाण है, उसी के अनुकरण पर घड़ी चलती है, बिजली का पंखा चलता है, चक्कर काटने वाली हर चीज दक्षिणावर्त चलती है, जब तक कि कोई विशेष व्यवस्था न की गई हो। तिलोयपण्णत्ती में दक्षिण दिशा के स्वामी के विषय में कहा है"पाण्डुक वन के मध्य में चूलिका के पास दक्षिण दिशा की ओर अंजन नामक भवन है। इसका विस्तारादिक पूर्वोक्त भवन के ही सदृश है तथा अंजनभवन के मध्य में अरिष्ट नामक विमान का प्रभु यम नामक लोकपाल काले रंग की वस्त्रादिक सामग्री सहित रहता है तथा वहाँ अरिष्ट विमान के परिवार विमान 6 लाख 66 हजार 666 है तथा वहाँ पर दक्षिण दिशा में प्रतीन्द्र का निवास स्थान भी बना हुआ है"39 इस प्रकार दक्षिण दिशा का स्वामी प्रभु यम नामक लोकपाल को निर्धारित किया गया। वास्तुकारों ने भी दक्षिण दिशा के स्वामी का नामोल्लेख यम ही किया है। वैदिक परम्परा में यम यमराज का द्योतक है जो व्यक्ति के प्राणहरण का कार्य करता है। परन्तु जैन दर्शन में यम लोकपाल मात्र रक्षक देव है जो सौधर्म इन्द्र के विमान की दक्षिण दिशा की रक्षा करता है। प्राणहरण करने वाला नहीं है। जैन दर्शन में समाधिमरण प्राप्त साधक को अंतिम समय में दक्षिण दिशा की ओर पैर करके शयन की आज्ञा दी गयी है तथा दक्षिण दिशा में पैर करने से प्राण
SR No.525082
Book TitleSramana 2012 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2012
Total Pages102
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size10 MB
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