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________________ 4 : श्रमण, वर्ष 63, अंक 4 / अक्टूबर-दिसम्बर 2012 एक अन्य अभिलेख से ज्ञात होता है कि जैन उपदेशक शांतिसेन ने राजा भोज के दरबार के उन सभी विद्वानों को शास्त्रार्थ में परास्त किया था जो जैन उपदेशों को सम्मान की दृष्टि से नहीं देखते थे। राजा भोज तथा जैन कवि ध नपाल के बीच में विभिन्न धार्मिक विषयों पर होने वाले वार्तालापों का विवरण मिलता है। राजा भोज के बाद परमार वंश का प्राचीन गौरव नष्ट होने लगा। अन्त में परमार वंश का राज्य चौलुक्य साम्राज्य के अधीनस्थ हो गया। यह कार्य चौलुक्य राजा जयसिंह सिद्धराज के शासनकाल में सम्भवतः 12वीं शताब्दी के अन्त में हुआ। चौलुक्य राजा कुमारपाल के समकालीन बल्लाल का शासन अवन्ति (मालवा) राज्य पर था। कई साक्ष्य कुमारपाल की ओर से बल्लाल को मार डालने का दावा करते हैं। वडनगर प्रशस्ति से ज्ञात होता है कि मालवराज का सिर कुमारपाल के महल के दरवाजे पर टांग दिया गया।2 भोज के उत्तराधिकारी परमारों के प्राचीन गौरव की रक्षा नहीं कर सके। भोज की मृत्यु (1055 ई0) के बाद परमार राज्य आन्तरिक संघर्षों और बाहरी आक्रमणों का शिकार होने लगा। परमार वंश के अन्तिम समय के कुछ राजाओं के नाम मिलते हैं। विन्ध्यवर्मन 1175ई0-1194ई0 में मालवा पर पुनः विजय कर परमार सत्ता को पुनर्जीवित किया। समुद्रवर्मन एवं अर्जुनवर्मन भी भोज की परम्परा में आते हैं। इन्होंने विद्वानों को दरबार में आने के लिए प्रेरित किया। जैन कवि आशाधर इनके दरबार में रहते थे। 'पारिजात मंजरी' से ज्ञात होता है कि आशाधर नालकच्छपुर में निवास करते थे। अर्जुन वर्मन के उत्तराधिकारी देवपाल के शासन काल में अपने प्रसिद्ध ग्रंथ 'जिनयज्ञकल्प' को पूर्ण किया। देवपाल के उत्तराधिकारी जयतुगी देव के शासनकाल में अपने दो ग्रंथों -'सागारधर्मामृत' तथा 'अनगार धर्मामृत' की रचना किया। उसने जैन धर्म पर आधारित एक अन्य ग्रंथ 'कर्मविपाकतिका' की रचना नालकच्छपुर में 1238 ई0 में किया। यह स्थान महान् विद्यापीठ के रूप में प्रसिद्ध हुआ। इसने अनेक जैन विद्वानों को अपनी ओर आकृष्ट किया। मालवा के परमार शासकों में एक नाम नरवर्मन का मिलता है। वह शैव धर्म का अनुयायी होते हुए भी जैन धर्म के श्वेताम्बर सम्प्रदाय के प्रति अत्यन्त श्रद्धालु था। जैन आचार्य जिनवल्लभ सूरि के प्रति वह काफी आस्थावान था। खरतरगच्छ की परम्परा से ज्ञात होता है कि नरवर्मन के दरबार में दो दक्षिणात्य ब्राह्मण एक समस्या के समाधान हेतु मालवा आए थे। मालवा के विद्वान् उस समस्या का सन्तोषप्रद हल नहीं निकाल सके। अतः राजा ने उन ब्राह्मणों को जिनवल्लभ सूरि
SR No.525082
Book TitleSramana 2012 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2012
Total Pages102
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size10 MB
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