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________________ प्राकृतकथा वाङ्मय में निहित वैश्विक संदेश डॉ. रजनीश शुक्ल प्राकृत कथा साहित्य जैन साहित्य का एक विशाल एवं अत्यन्त महत्त्वपूर्ण भाग है। दर्शन की गूढ़ से गूढ़ समस्याओं के समाधान के लिए तथा अपने विचारों एवं अनुभूतियों को जनमानस तक पहुँचाने के लिए तीर्थकरों, गणधरों तथा जैनाचार्यों ने कथाओं को सशक्त माध्यम माना । कथा साहित्य में मुख्य रूप से नीति कथा एवं लोक कथा के अन्तर्गत सभी प्रकार की कथाओं का समावेश हो जाता है। ये कथाएँ तत्कालीन समाज एवं संस्कृति का आइना हैं जिनमें प्रतिबिम्बित संयम, अहिंसा, सदाचार, सहिष्णुता, क्षमा, विनय आदि के संदेशों को यदि उनके सही अर्थों में अनुपालित किया जाय तो ये वैश्विक संदेश सिद्ध हो सकती हैं। प्रस्तुत लेख में लेखक ने प्राकृत साहित्य में निहित वैश्विक संदेशों को बड़ी सूक्ष्मता से निदर्शित करने का प्रयास किया है। -सम्पादक मानव जीवन के मनोरंजन एवं ज्ञानवर्धन के लिए कथा साहित्य सर्वोत्तम सरस व सरल साधन है। साहित्य में कथानक की विधा अत्यन्त पुरातन है । सम्भवतः मानव सभ्यता के विकास के साथ-साथ ही यह विधा भी विकसित होती चली गयी। कथा साहित्य का प्राचीनतम रूप लोककथाओं में प्राप्त होता है। इन लोककथाओं में कुतूहल एवं जिज्ञासा का भाव इस प्रकार विद्यमान होता है कि श्रोता चाहे ज्ञानी हो या अज्ञानी, बाल हो या वृद्ध, वह उन्हें सुनता चला जाता है। प्राकृत कथा साहित्य का उद्गम स्थल प्राकृत आगम- साहित्य माना जा सकता है। प्राकृत आगम साहित्य में धार्मिक आचार, आध्यात्मिक तत्त्व - चिन्तन तथा नीति एवं कर्त्तव्य का प्रणयन कथाओं के माध्यम से ही किया गया है। दर्शन की गूढ़ से गूढ़ समस्याओं को सुलझाने तथा अपने विचारों व अनुभूतियों को सरलतम रूप से जनसामान्य तक पहुँचाने के लिए तीर्थकरों, गणधरों एवं अन्य जैनाचार्यों द्वारा कथाओं का ही आलम्बन लिया गया है । ज्ञाताधर्मकथा, उपासकदशांग, विपाकसूत्र, उत्तराध्ययन आदि ग्रन्थ आगमकालीन प्राकृत कथा ग्रंथों के महत्त्वपूर्ण उदाहरण हैं ।
SR No.525081
Book TitleSramana 2012 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2012
Total Pages90
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size11 MB
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