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________________ 8 : श्रमण, वर्ष 63, अंक 3 / जुलाई-सितम्बर 2012 उसे धर्म के निकट ले आते हैं। इसी प्रकार अधर्मास्तिकाय के अधर्म, प्राणातिपात अविरमण यावत् परिग्रह-अविरमण, क्रोध-अविवेक यावत् मिथ्यादर्शनशल्य-अविवेक आदि अभिवचन अधर्मास्तिकाय को अधर्म या पाप के निकट ले आते हैं। आकाशास्तिकाय के गगन, नभ, सम, विषम आदि अनेक अभिवचन हैं। जीवास्तिकाय के अभिवचनों में जीव, प्राण, भूत, सत्व, चेता, आत्मा आदि के साथ पुद्गल को भी लिया गया है, जो यह सिद्ध करता है कि पुद्गल शब्द का प्रयोग प्राचीन काल में जीव के लिए भी होता रहा है। पुद्गलास्तिकाय के अनेक अभिवचन हैं, यथा-पुद्गल, परमाणु-पुद्गल, द्विप्रदेशी यावत् संख्यात प्रदेशी, असंख्यात प्रदेशी, अनन्त प्रदेशी आदि।" काल की द्रव्यता पंचास्तिकाय के अतिरिक्त काल को द्रव्य मानने के संबंध में जैनाचार्यों में मतभेद रहा है। इस मतभेद का उल्लेख तत्त्वार्थसूत्रकार उमास्वाति ने 'कालश्चेत्येके' सूत्र के द्वारा किया है। आगम में भी दोनों प्रकार की मान्यता के बीज उपलब्ध होते हैं। उदाहरणार्थ भगवान महावीर से प्रश्न किया गया - किमिदं भंते! काले त्ति पवुच्चति? भगवन्! काल किसे कहा गया है? भगवान् ने उत्तर दिया - जीवा चेव अजीवा चेव त्ति। अर्थात् काल को जीव और अजीव कहा गया है। इसका तात्पर्य है कि काल जीव और अजीव का पर्याय ही है, भिन्न द्रव्य नहीं। यह कथन एक अपेक्षा से समीचीन है। 'लोकप्रकाश' नामक ग्रन्थ में उपाध्याय विनयविजय ने इस आगमवाक्य के आधार पर तर्क उपस्थित किया है कि वर्तना आदि पर्यायों को यदि द्रव्य माना गया तो अनवस्था दोष आ जायेगा। पर्यायरूप काल पृथक् द्रव्य नहीं बन सकता है। आगम में क्योंकि 'अद्धासमय' के रूप में काल द्रव्य का विवेचन प्राप्त होता है, अतः लोकप्रकाश में एतदर्थ तर्क उपस्थापित करते हुए कहा है - 1.लोक में नानाविध ऋतुभेद प्राप्त होता है, उसके पीछे कोई कारण होना चाहिए और वह काल है। 2.आम्र आदि वृक्ष अन्य समस्त कारणों के उपस्थित होने पर भी फल से वंचित रहते हैं। वे नानाशक्ति से समन्वित कालद्रव्य की अपेक्षा रखते हैं।20। 3 वर्तमान, अतीत एवं भविष्य का नामकरण भी काल द्रव्य के बिना संभव नहीं हो सकेगा तथा काल के बिना पदार्थों को पृथक्-पृथक् नहीं जाना जा सकेगा।
SR No.525081
Book TitleSramana 2012 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2012
Total Pages90
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size11 MB
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