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________________ समवायांगसूत्र में पाठभेदों की प्रमुख प्रवृत्तियाँ डा. अशोक कुमार सिंह किसी भी परम्परा की मूल प्रवृत्तियां एवं उसके आप्त पुरुषों द्वारा अपने उपदेशों में अपनायी गयी भाषा की विशेषताओं का उसके साहित्य पर प्रभाव अपरिहार्य है। जैन परम्परा अर्थ को प्रधानता देती है । अतः साहित्य में एक ही प्रसंग में एक अर्थ के वाचक भिन्न शब्द के प्रयोग में कोई आपत्ति नहीं। जैन परम्परा में तीर्थकरों ने अपने उपदेशों को सहज एवं व्यापक बनाने हेतु जनसामान्य की भाषा प्राकृत को माध्यम बनाया। जनसामान्य द्वारा अलग- अलग क्षेत्रों में अलग- अलग बोली का प्रयोग किया जाता है। इस कारण क्षेत्रीयता का भी प्रभाव भाषा पर है। प्राकृत विकल्प बहुला है। इसमें शब्दों और धातुओं के अनेक रूपों की उपस्थिति सामान्य है। उक्त सब कारणों का परिणाम यह है कि एक ही ग्रन्थ की अनेक पाण्डुलिपियों में पर्याप्त पाठभेद पाये जाते हैं। इन पाठभेदों को बढ़ाने में लेहिया (पाण्डुलिपिकार) की मानवीय भूलों का भी योगदान है। प्रस्तुत आलेख में समवायांग की विभिन्न पाण्डुलिपियों में पाये जाने वाले पाठभेदों की प्रमुख प्रवृत्तियों को उदाहरण सहित प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है सम्पादक जैन आगम अर्थ प्रधान है। आगम सामान्यरूप से तीर्थकर के उपदेश हैं। तीर्थकरों के उपदेशों को उनके प्रधान शिष्य गणधरों ने सूत्ररूप में निबद्ध किया है। आवश्यकनियुक्ति' में कहा भी गया है- अत्थं भासइ अरहा सुत्तं गंथंति गणहरा निउणं। जैन आगम परम्परा के अर्थ-प्रधान होने का स्वाभाविक परिणाम था शब्दों पर बल न देकर अर्थ पर बल देना। अभिप्राय व्यक्त करना मुख्य था शब्द चाहे जो प्रयोग किये जायें। इसके विपरीत यदि वेदों को देखा जाए तो वे शब्दप्रधान हैं। उनमें शब्द मुख्य हैं। शब्द क्या? विराम, मात्रा तक में भी परिवर्तन सम्भव नहीं है। इसी का परिणाम है कि जे. मैक्सम्यूलर को ऋग्वेद की उनहत्तर (69)पाण्डुलिपियों में एक भी अल्पविराम और मात्रा का भी अन्तर दृष्टिगत नहीं हुआ। वहीं जब हम जैन परम्परा की पाण्डुलिपियों - हस्तप्रतों पर दृष्टिपात करते हैं तो उनमें पाठभेदों या पाठान्तरों की भरमार दिखाई पड़ती है। इन पाठभेदों की बहुलता देखकर यह जिज्ञासा स्वाभाविक है कि आगम ग्रन्थों की विषयवस्तु पर इन पाठभेदों का क्या प्रभाव पड़ता है? आगम जैसे पवित्र
SR No.525080
Book TitleSramana 2012 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Ashokkumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2012
Total Pages72
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size7 MB
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