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________________ जैन अंग साहित्य में प्रतिबिम्बित...... : 25 प्रतिदिन आवश्यक रूप से करणीय होती थी। इस संस्कार को करने के पूर्व उन्हें गुरु से आज्ञा लेनी होती थी। इस संस्कार की महत्ता इसी से सिद्ध होती है कि आचारांगसूत्र में भगवान महावीर ने कहा है कि आत्मा में ही समस्त सुख-दुःख के बीज छिपे होते हैं। अतः सुख की प्राप्ति के लिए आवश्यक सस्कार अनिवार्य है। आगम ग्रन्थों में कहा गया है कि जैसे बाल और ग्लान के लिए आहार आवश्यक होता है, वैसे ही गुरु आज्ञा के अनुपालन और माक्षाभिलाषी भव्य जीवों के लिए अनुष्ठान आवश्यक होता है। (7) तप-विधि- जिस क्रिया द्वारा शरीर के रस, रुधिर आदि की शुद्धि हो उसे तप कहा जाता है। राजवार्तिक के अनुसार जो कर्म को भस्म करे, उसे तप कहते हैं।” तप क्रिया निर्ग्रन्थ मुनियों द्वारा करायी जाती थी। अंग साहित्य में श्रमण-श्रमणी. श्रावक-श्राविका सभी के द्वारा तप क्रिया किये जाने का उल्लेख मिलता है। यथा- श्रेष्ठी कार्तिक ने चतुर्थ (उपवास). राजा शिव" ने दिकपोक्षक. धन्यकुमार व महाबल" ने उपवास, बेला, तप करते हुए अपनी साधना को पूर्ण किया था। (8) पदारोपण संस्कार- यहाँ पद से तात्पर्य सम्मानजनक स्थान. पदवी आदि से है। जिस विधि के द्वारा किसी व्यक्ति को पदवी या कोई सम्मानजनक स्थान प्रदान किया जाता है, उसे पदारोपण-विधि कहते हैं। इस संस्कार का मुख्य उद्देश्य विभिन्न पदों पर योग्य व्यक्तियों को स्थापित करना था। यह कार्य भी आचार्य द्वारा कराया जाता था। अतः जैन संस्कृति में भी संस्कारों की सामाजिक, नैतिक और आध्यात्मिक मूल्यवत्ता रही है। संस्कार को मात्र कर्मकाण्ड न मानकर जीवन निर्माण का सूत्र भी माना गया है। इस संस्कृति में गृहस्थ व मुनि दोनों के लिए संस्कारों का प्रयोजन किया गया था। उपसंहार मानव शिशु के उज्ज्वल भविष्य व समाज के चतुर्मुखी विकास के लिए उसका संस्कारवान् होना आवश्यक रहा है। संस्कारों के अभाव में उसका जीवन मुरझाये हुए फूलों के समान हो जाता है जो उचित वातावरण के अभाव में समुचित ऊर्जा नहीं दे पाता है। विविध संस्कारों के माध्यम से सदाचार, विनय, क्षमा, दया, सत्य, अहिंसा आदि गुणों का विकास होता है, जो परिवार, समाज, राष्ट्र एवं विश्व में शान्ति स्थापित करने में सहयोगी होता है। जैन संस्कृति में प्रचलित चालीस संस्कार न केवल प्राचीन मानव समाज के पारिवारिक, आर्थिक एवं
SR No.525080
Book TitleSramana 2012 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Ashokkumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2012
Total Pages72
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size7 MB
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