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श्रमण परम्परा : भगवान् ऋषभदेव से पार्श्वनाथ पर्यन्त : 45 कौशल, काशी, सुम्ह, अवन्ती, पुण्डमालव आदि प्रदेशों में भ्रमण कर विवेकमूलक धर्मसाधना के मार्ग को बताया। पार्श्वनाथ के आत्मा, व्रत्यादि तात्त्विक विषयों का जनमानस पर इतना अधिक प्रभाव पड़ा कि वैदिक संस्कृति के उपासकों ने भी इसे अपनाया। पार्श्वनाथ के उपदेशों की स्पष्ट झाँकी उपनिषदों में प्राप्त होती है। प्राचीनतम उपनिषद् भी पार्श्व के उत्तरवर्ती हैं।
सन्दर्भ 1. आवश्यकचूर्णि, भाग एक, पृ. 156 2. आवश्यकचूर्णि, भाग एक, पृ. 154 3. आवश्यक नियुक्ति, गाथा 213 4. महापुराण, 190/16/363, वृहत्स्वयम्भूस्तोत्र, 5. श्रीमद्भागवत, श्रीधरी टीका, पृ. 1272, 11/2/17 6.(.क) सूत्रकृतांगसूत्र, 1/2/1 (ख) श्रीमद्भागवत, 5/5/1-27 7. श्रीमद्भागवत, 5/5/28-29 8. ऋग्वेद, 6/26/4 १. वही, 10/166/1, 10. यजुर्वेद, मण्डल 10, सूक्त 166, श्लोक 1 11. अथर्ववेद, पृ. 9/4/1-24 12. श्रीमद्भागवत, 5/4/4 13. सूरसागर काव्य का 5वॉ स्कन्ध, पृ. 52, देखें सूरदास प्रो. ब्रजेश्वर वर्मा, लोक भारती प्रकाशन, 15-ए, महात्मा गांधी मार्ग, इलाहाबाद 14. स्थानांगसूत्र, स्थान 4, सूत्र 235 15. समवायांग, समवाय, 18 16. भगवतीसूत्र, 20/8/69 17. प्रज्ञापनासूत्र, मुनि पुण्यविजय द्वारा सम्पादित 18. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति 19. उत्तराध्ययनसूत्र, अध्ययन 18/34 20. वही, 23/26-27 21. वही, 25/16-17 22. कल्पसूत्र