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________________ श्रमण परम्परा : भगवान् ऋषभदेव से पार्श्वनाथ पर्यन्त : 43 में प्रयुक्त अरह, अहित का वाचक है। अर्हत्, अरहन्त या अरिहन्त समानार्थक हैं। अरहनाथ जैन तीर्थकर महाभारत के प्रमुख नायक श्रीकृष्ण से बहुत पहले हुए हैं, यह स्पष्ट जानना चाहिए। उन्नीसवें तीर्थकर मल्लिनाथ महाराज जनक के पूर्व वंशज हैं। जबकि मुनि सुव्रतनाथ जैन परम्परानुसार पुरुषोत्तम राम-लक्ष्मण के समकालीन हुए हैं। ध्यातव्य है कि एक समय में एक ही अरिहन्त तीर्थकर केवली होता है तथा एक ही बलभद्र, एक नारायण और एक प्रतिनारायण होगा। नमिनाथ महाराजा जनक के ही कुल में उत्पन्न हुए थे जो 21वें तीर्थकर हुए हैं, वे श्रीकृष्ण से पूर्ववर्ती हैं।52 इतिहासविद् डॉ0 ज्योतिप्रसाद जैन का अभिमत है कि उपनिषदों में वर्णित ब्रह्म या आत्मविद्या के मूल पुरस्कर्ता नमिनाथ ही हैं। बाईसवें जैन तीर्थकर नेमिनाथ अपर नाम अरिष्टनेमि निर्विवाद ऐतिहासिक महापुरुष सिद्ध हैं कारण कि वे श्रीकृष्ण के ही वंश में उत्पन्न चचेरे भाई और वसुदेव के ज्येष्ठ भ्राता समुद्रविजय के सुयोग्य पुत्र थे। वेदों में इनका तार्क्ष्य अरिष्टनेमि के रूप में नामोल्लेख किया गया है। महाभारत में आपको ही सर्वशास्त्रविदोवर और कुशल महारथी बताया गया है। आपके संन्यास जीवन का सुन्दर चित्रण महाभारत के निम्न श्लोक में स्पष्ट मिलता हैयुगे युगे महापुण्यं दृश्यते द्वारिकापुरी। अवतीर्णो हरिर्यत्र प्रभास शशिभूषणः।। रेवताद्रौ जिनो नेमियुगादि विमलाचले। ऋषीणामाश्रमादेव मुक्तिमार्गस्य कारणम्।। विदेषी विद्वान् कर्नल टाड अपने आलेख में लिखते हैं कि संसार में चार बुद्धया मेधावी महापुरुष हुए हैं। उनमें पहले आदिनाथ हैं तो दूसरे नेमिनाथ। नेमिनाथ ही स्केण्डीनेवियावासियों के प्रथम ओडिन हैं और वे ही नेमिनाथ चीनियों के प्रथम 'फो' देवता हैं। छान्दोग्य उपनिषद् में इन्हें ही घोर आंगिरस ऋषि बतलाया गया है। डॉ0 धर्मानन्द कौशाम्बी और विश्वम्भरनाथ उपाध्याय भी इसका समर्थन करते हैं। जैनेतर धर्मावलम्बी नेमिनाथ को विष्णु का अवतार दत्तात्रेय मानते हैं। डॉ0 नगेन्द्रनाथ वसु, पुरातत्त्ववेत्ता डॉ0 फ्यूहरर, प्रोफेसर वार्नेट, मिस्टर करवा, डॉ० हरिदत्त और डॉ० प्राणनाथ प्रभृति विद्वान् नेमिनाथ को ऐतिहासिक महापुरुष स्वीकार करते हैं। इस प्रकार ऐतिहासिक सन्दर्भो, साक्ष्यों व विद्वानों के अभिमतों की ओर ध्यान दिया जाय तो यह स्पष्ट झलकता है कि तीर्थकर नेमिनाथ अपने युग के एक ऐतिहासिक महापुरुष थे। साथ ही यह भी निर्विवाद सिद्ध है कि
SR No.525079
Book TitleSramana 2012 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2012
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size12 MB
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