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________________ भेदविज्ञान द्वारा श्रावक-लोभसंवरण : 27 41. सुख-दुखबहुशस्यं कर्मक्षेत्रं कृषन्तिीति कषायाः। कषन्तीति कषायाः-धवला, वीरसेन, सम्पा. डा. हीरा लाल जैन, जैन साहित्योद्धारक फण्ड कार्यालय, अमरावती,1939 पुस्तक1, पृ. 141, 42. कम्मं कसभवो वा कसमाओ सिंजओ कसाया तो। कसमाययंतिव जओ गमयंति कसंकसायत्ति।। गाथा 3545,विशेषावश्यकभाष्य, जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, सम्पा. वज्रसेनविजयगणि, भद्रंकर प्रकाशन, अहमदाबाद तृ. सं. 1996, भाग 2, पृ. 549, 43. अज्झवसाणविसुद्धी कसायसंल्लेहणा भणिदा-गाथा 261 भगवती आराधना, आचार्य शिवार्य, सम्पा. एवं अनु. जैन संस्कृति संरक्षक संघ, शोलापुर, तृ. सं. 2006, 44. सद्ध्यानप्रकरैः कषायविषया सल्लेखना श्रेयसी10-10, आचारसार वीरनन्दि, माणेक चन्द दिगम्बर जैन ग्रन्थमाला, मुम्बई 1917, 45. भारतीय आचार दर्शन: एक तुलनात्मक अध्ययन, भाग दो, डॉ. सागरमल जैन, प्राकृत भारती अकादमी, जयपुर एवं प्राच्य विद्यापीठ, शाजापुर, 2010, पृ. 46. धवला, वीरसेन, सम्पा. डा. हीरा लाल जैन, जैन साहित्योद्धारक फण्ड कार्यालय, अमरावती,1949,पुस्तक9, पृ. 141, 47. दानाहेषु स्वधनाप्रदानं परधनग्रहणं वा लोभः- समुद्देश 4,श्लोक 4, नीतिवाक्यामृतम्, आचार्य सोमदेवसूरि, अनु., सम्पा. एवं प्रकाशक सुन्दरलाल शास्त्री, 1976, 48. दानाहेषु स्वधनाप्रदानं निष्कारणं परग्रहणं च लोभ:-1.56 योगशास्त्र, आचार्य हेमचन्द्र, मोती लाल बनारसीदास, दिल्ली, 49. स्थले धनव्ययाभावो लोभः-135, नियमसारवृत्ति, अमृतचन्द्रसूरि 50. डा. मुनि भुवनेश, जैन आगमों के आचार दर्शन और पर्यावरण संरक्षण का मूल्यांकन, सर्जना प्रकाशन जयपुर 1998, पृ. 259, 51. इसिभासियाइं (ऋषिभाषितानि), प्र. सम्पा. आचार्य महाप्रज्ञ, सम्पा. एवं अनु. डॉ. समणी कुसुम प्रज्ञा, जैन विश्व भारती, लाडनूं, 2011, पृ. 113 52. बृहदारण्यकोपनिषद् (सानुवाद शांकरभाष्यसहित), गीताप्रेस, गोरखपुर, नवम सं., 2001 3.5.1 53. आत्मानुशासन, आचार्य गुणभद्र 54. उत्तराध्ययनसूत्र, मधुकर मुनि, ब्यावर 1984, 9.48 एवं 8.17 55. स्थानांगसूत्र, मधुकर मुनि, ब्यावर 1981, स्थान 4, उद्दे. 2, सू. 284, 56. आचारांगसूत्र,मधुकर मुनि, 1.2.31, 57. वही, 58. लोभो सव्वविणासणो-8.38,दशवकालिकसूत्र, मधुकर मुनि, 59. अमरुक उद्धृत, सुभाषितरत्नभाण्डागारम् , निर्णय सागर प्रेस, बम्बई 1911, 72.4 60. सुभाषितरत्नभाण्डागारम्,बम्बई 1911, 72.4
SR No.525079
Book TitleSramana 2012 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2012
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size12 MB
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