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14 : श्रमण, वर्ष 63, अंक 1 / जनवरी-मार्च 2012 राज्यों की परम्परा या व्यवस्था का पालन करना बताया है। साधुओं के भी गण होते हैं जिन्हें गच्छ कहा जाता है। गण के नियमों के अनुसार आचरण करना गणधर्म है। संघधर्म-साधु, साध्वी, श्रावक और श्राविका चारों से यह अपेक्षा की जाती है कि वे संघ के नियमों का पालन करें। इसी प्रसंग में स्थानांगसूत्र के स्थविर सूत्र का उल्लेख किया जाना युक्तिसंगत होगा। इस सूत्र के अनुसार ग्रामस्थविर-ग्राम का व्यवस्थापक, नगर स्थविर-नगर का व्यवस्थापक, राष्ट्रस्थविर-राष्ट्र का व्यवस्थापक, कुलस्थविर-कुल का व्यवस्थापक, गणस्थविर-गण का व्यवस्थापक और संघस्थविर-संघ का व्यवस्थापक होता था। अतः इनके आदेशों या इनके द्वारा निर्मित नियमों का पालन भी नागरिकों एवं साधु-साध्वियों के लिए आवश्यक होता था। इस प्रकार श्रावकों के सामाजिक दायित्व का सम्यक् विचार स्वयं भगवान् महावीर ने भी अपने उपदेशों में किया था। प्रो. सागरमल जैन द्वारा उपासकदशांग, आचार्य समन्तभद्र कृत रत्नकरण्ड श्रावकाचार और आचार्य हेमचन्द्रकृत योगशास्त्र में वर्णित श्रावक के गुणों, बारह व्रतों एवं उनके अतिचारों के विवरण के आधार पर पर प्रदत्त श्रावक के सामाजिक दायित्वों में से कुछ को यहाँ प्रस्तुत किया जा सकता है1. किसी निर्दोष प्राणी को बन्दी मत बनाओ अर्थात् सामान्य जनों की स्वतन्त्रता में बाधक मत बनो। 2. किसी की आजीविका में बाधक मत बनो। 3. स्वार्थ-सिद्धि हेतु असत्य वचन मत बोलो। 4. न्यायनीति से धन उपार्जन करो। 5. न स्वयं चोरी करो, न चोर को सहयोग दो और न चोरी का माल खरीदो। 6. व्यवसाय के क्षेत्र में नाप-तौल में प्रामाणिकता रखो और वस्तुओं में मिलावट मत करो। 7. राजकीय नियमों का उल्लंघन और राज्य के करों का अपवंचन मत करो। 8 वर्जित व्यवसाय मत करो। 9. आय के अनुसार व्यय करो। 10. यथासम्भव अतिथियों, सन्तजनों, पीड़ित एवं असहाय व्यक्तियों की सेवा, अन्न, वस्त्र, आवास, औषध आदि के द्वारा उनकी आवश्यकताओं की पूर्ति करो। 11. प्रसिद्ध देशाचार का पालन करो, सदाचारी पुरुषों की संगति करो। 12. जिनके पालन-पोषण का भार अपने ऊपर हो उनका पालन-पोषण करो। 13. देश और काल के प्रतिकूल आचरण मत करो। 14. अपने प्रति किये हुए उपकार को नम्रतापूर्वक स्वीकार करो।