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________________ भेदविज्ञान द्वारा श्रावक - लोभसंवरण: 11 हैं। श्रावक लक्षण में बारह व्रत - पालन आधार - भित्ति है। पंचपरमेष्ठि की भक्ति दान और भेदज्ञान रूपी अमृत की पिपासा से युक्त श्रावक होता है। आचार्य हरिभद्र के अनुसार श्रावक की पहचान बारह व्रत ही हैं। इन व्रतों का पालक चाहे ब्राह्मण हो या शूद्र हो श्रावक है। श्रावक के सिर पर कोई मणि नहीं होती । पं. आशाधर के अनुसार पंचपरमेष्ठि का भक्त, प्रधानता से दान और पूजन करने वाला, भेदज्ञान रूपी अमृतपान का इच्छुक तथा मूलगुणों और उत्तरगुणों का पालन करने वाला व्यक्ति श्रावक होता है । 1 श्रावक का व्यावहारिक स्वरूप बताते हुए पं. आशाधर ने कहा है- न्यायपूर्वक धनार्जन करने वाला, गुणों, गुरुजनों तथा गुणों श्रेष्ठ व्यक्तियों का पूजक, हित-मित और प्रियभाषी, धर्म, अर्थ और काम का परस्पर विरोध रहित सेवनकर्त्ता, शास्त्र के अनुकूल आहार और विहार करने वाला, लज्जावान, सदाचारियों की संगति करने वाला, विवेकी, कृतज्ञ, जितेन्द्रिय,, धर्मविधि का श्रोता, दयावान और पापभीरु व्यक्ति श्रावक धर्म का पालक हो सकता है | S श्रावक के कर्त्तव्य श्रावक द्वारा धर्मनिष्ठ और सदाचारी होकर निज कर्त्तव्य के पालन में ही लोभ से निवृत्ति का मर्म छिपा हुआ है। जैनाचार्यो द्वारा धर्म की परिभाषा बताते हुए अहिंसा, दान दया और करुणा को धर्म कहा गया है-- अहिंसादिलक्षणो धर्म:', अहिंसा परमो धर्म:', धर्मस्तु... . दानशीलतपोभावनामयः, धम्म दया विशुद्धो', धम्मो दया पहाणो " धर्मो नाम कृपा मूल: ", सर्वप्राणिदयालक्ष्मो...... रत्नत्रयमयोधर्मः । तृप्ति - संतोष वृत्ति का भाव, दया-प्राणियों के प्रति करुणा भाव, भद्रा - कल्याणजन्य भावना, रक्षा - प्राणियों के बचाने का भाव, संयम- जीवरक्षा का भाव, यज्ञ - जीवरक्षा के प्रति यज्ञ, आशवास- समस्त प्राणियों को जीवन दान देना आदि अनेक अर्थों में । प्रश्नव्याकरणसूत्र 3 में अहिंसा के साठ (60) गुणनिष्पन्न पर्यायवाची दिये गये हैं। निश्चय ही यदि कोई धर्मनिष्ठ और सदाचारी श्रावक धर्म के इन गुणों से ओत-प्रोत हो जाये, मनसा, वाचा, कर्मणा, कृत, कारित, अनुमोदित धर्म के उक्त लक्षणों का पालन करे तो उसके हृदय में लोभ के लिए कोई स्थान नहीं रहेगा । श्रावक के कर्त्तव्य में प्रमुखता दान और पूजा ( जिनदेव, शास्त्र, गुरु) की है। आचार्य कुन्दकुन्द 14 के अनुसार इनके विना वह श्रावक भी नहीं है। सागारधर्मामृत'' में इस (दान और पूजा) के साथ शील और उपवास को जोड़कर श्रावक के चार कर्त्तव्य बताये गये हैं। कुरलकाव्य " में श्रावकों के पांच कर्त्तव्य बताये गये हैं- यहाँ देवपूजन और आत्मोन्नति के साथ पूर्वजों की कीर्ति की रक्षा
SR No.525079
Book TitleSramana 2012 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2012
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size12 MB
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