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७८ : श्रमण, वर्ष ६२, अंक ४ / अक्टूबर-दिसम्बर २०११ सन्दर्भ
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भगवती सूत्र, १६/६, पृ० ५६७ अष्टांगहृदय, निदान स्थान, ९ हिन्दी विश्वकोश खण्ड-१२, पृ० २६४ महापुराण, ४१-५९/६० वही, सर्ग, ४१/६१ स्थानांगसूत्र, ५ भगवतीसूत्र, १६/६ भगवतीसूत्र, १६/६ पृ० ५७० (क) भगवती० अभयदेवसूरि वृति, पत्र ७११ भगवती (हिन्दी विवेचन), भा० ५, पृ० २५५८ डोशी, रतनलालः, तीर्थंकर चरित्र, भाग-१, पृ० २९ वही, भाग-१, पृ० ३०-३१ दिगम्बर परम्परा में १६ स्वप्न देखती है ये स्वप्न हैं- १. लीलामय गति से गिरीन्द्र के समान मदोन्मत्त (ऐरावत) हाथी, २. दुन्दुभि के समान शब्द करता बैल, ३. सिंह, ४. युगल माला, ५. गजाभिषिक्त लक्ष्मी, ६. पूर्णचन्द्र, ७. सूर्य, ८. युगल कलश, ९. युगल मीन, १०. सरोवर, ११. समुद्र, १२. सिंहासन, १३. देव-विमान, १४. नागेन्द्र-भवन, १५. रत्नराशि, १६. निधूम अग्नि- जैन पुराणकोश, जैनविद्यासंस्थान, राजस्थान, पृ० ४७३ एवं वर्धमान जीवन-कोश, जैनदर्शन समिति, कलकत्ता, पृ० १४९ वियाहपण्णत्तिसुत्त, भा० २, (मूलपाठ-टिप्पणयुक्त), पृ० ७६२-७६३ भगवती सूत्र, युवाचार्य मुनि मधुकर : १६/६, पृ० ५७२ वही, पृ० ५७३-५७४ डॉ० मुनि पदम, बडी साधुवंदना प्रवचन, पृ० ३०७-३१६ (क) देखें आचार्य जयमल जी म.सा. की कृति' चंद्रगुप्त के सोलह सपने भगवतीसूत्र, १६/६, पृ० ५७५
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