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६० : श्रमण, वर्ष ६२, अंक ४ / अक्टूबर-दिसम्बर २०११
सौराष्ट्र देश के अणहिलपुर में प्रसिद्ध प्राग्वाट वंश के नीनान्वय कुल में समुत्पन्न सज्जनोत्तम सज्जन नाम का एक श्रावक था, जो धर्मात्मा था और मूलराज नृपेन्द्र की गोष्ठी में भाग लेता था। वह धर्म का एक आधार था। उसका कृष्ण नाम का एक पुत्र और जयन्ती नाम की एक पुत्री थी। वह धर्म कर्म में निरत, नशिरोमणि और दानादि द्वारा चतुर्विध संघ का संयोजक था। उसकी राणू नामक पत्नी से तीन पुत्र और चार पुत्रियाँ उत्पन्न हुईं। वीजा, साहनपाल और साढदेव ये तीन पुत्र थे और श्री, शृंगारदेवी, सुन्दु और सोखू ये चार पुत्रियाँ थीं। इनमें से सुन्दु या सुन्दिका जैन धर्म के प्रचार एवं उद्धार में रुचि रखती थी। कृष्ण की संतान ने अपने कर्मक्षय हेतु कथाकोश की व्याख्या कराई। कर्त्ता ने भव्यों की प्रार्थना से पूर्व आचार्यों की रचना को श्रीचन्द्र के सम्मुख रखी थी। इसी कृष्ण श्रावक की प्रेरणा से कवि ने उक्त कथाकोश को बनाया था। प्रस्तुत ग्रंथ विक्रम की ११वीं शताब्दी के उत्तरार्ध एवं १२वीं शताब्दी के पूर्वार्ध की रचना है ।
मुनि श्रीचन्द्र ने कहकोसु की रचना के पूर्व भगवती आराधना की दो गाथायें उद्धृत की हैं। कथाओं का प्रारम्भिक परिचय एवं शीर्षक के बाद प्रायः भगवती आराधना की गाथाओं का भाग दिया है। डॉ. ए. एन. उपाध्ये ने कथाकोश अथवा कहकोसु की प्रस्तावना में एक तालिका दी है, जिसमें यह द्रष्टव्य है कि किस प्रकार विभिन्न कथायें क्रमशः भगवती आराधना की गाथाओं से संबंधित है। कई कथाओं में श्रीचन्द्र ने कहकोसु में भगवती आराधना का अनुसरण किया है। इस कहकोसु में ५३ संधियाँ हैं, जिनमें विविध व्रतों के अनुष्ठान द्वारा फल प्राप्त करने वालों की कथाओं का रोचक ढंग से संकलन किया गया है । कथाएँ
सुन्दर और सुखद हैं। इस ग्रंथ की प्रत्येक सन्धि में कम से कम एक कथा अवश्य आई है। ये सभी कथाएँ धार्मिक और उपदेशप्रद हैं। कथाओं का उद्देश्य मनुष्य के हृदय में निर्वेग भाव जागृत कर वैराग्य की ओर अग्रसर करना है। कथाकोश में आई हुई कथाएँ तीर्थंकर महावीर के काल से गुरु परम्परा द्वारा निरन्तर चलती आ रही हैं।
अतः कहकोसु कथाग्रंथ में मुनि श्रीचंद्र ने भगवती आराधना तथा बृहत्कथा कोश से कथावस्तु ली है इसीलिए राजनैतिक चित्रण में पौराणिक समाज पर राजनीति का प्रभाव आंशिक रूप से प्रतिबिम्बित होता है । कवि ने अपने समय में प्रचलित राजनीतिक व्यवस्थाओं तथा राज्य के उत्तरदायित्व को अल्प ही चित्रित किया है। लेकिन इसके अनुशीलन से कुछ झलक तो अवश्य ही पाई जाती है। कहकोसु में चित्रित राजनैतिक जीवन की झांकी को इस प्रकार प्रस्तुत किया जा सकता है