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________________ ५८ : श्रमण, वर्ष ६२, अंक ४ / अक्टूबर-दिसम्बर २०११ १३. वही, कारिका ५९ की टीका, पृ० १५३, १४. (अ) कार्ल एच० पॉटर ने इनका समय १६१० ई० माना है Encyclopaedia of Indian Philosophy, Potter, karl H, Motilal Banarasi Das Publishers Pv. Ltd. (ब) दरबारी लाल कोठिया ने इनका समय १३५८-१४१८ ई० माना हैजैनन्याय की भूमिका, दरबारी लाल कोठिया, जैनविद्या संस्थान, जयपुर, पृ० १२० सम्यग्ज्ञानं प्रमाणम्। – न्यायदीपिका, धर्मभूषण, उद्धृत- न्यायदीपिका कोठिया, दरबारी लाल, भारतवर्षीय अनेकान्त विद्वत् परिषद, वाराणसी १९९८, पृ० ९, न्यायभाष्य, पृ० १८, काशी, असन्दिग्धाविपरीतार्नाधिगतविषया चित्तवृत्तिः, बोधश्च पौरुषेयः फलं प्रमा। - कारिका ४, वाचस्पति मिश्र, तत्त्वकौमुदी सांख्य, उद्धृत सांख्यकारिका, डॉ० ब्रजमोहन चतुर्वेदी, नेशनल पब्लिशिंग हाउस, दिल्ली, पृ० ७० (भूमिका), न्यायमञ्जरी, स्वार्थव्यवसायात्मकं ज्ञानं प्रमाणं। - कारिका ७७, तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक, १/१०, टीका, स्वापूर्वार्थ व्यवसायात्मकं ज्ञानं प्रमाणं। - १/१, परीक्षामुख, जयपुर, आप्तमीमांसा भाष्य, कारिका १०१ की टीका, १/१, परीक्षामुख, जयपुर, प्रमेय कमलमार्तण्ड, श्री लाल मुसद्दीलाल जैन चैरिटेबल ट्रस्ट, देहली, पृ० १६७-१७७, तत्त्वार्थश्लोकवार्त्तिक, आचार्यविद्यानंद, १/१० की टीका, श्लोक ७८ ७९ २५. तत्त्वार्थवार्त्तिक, आचार्य अकलङ्क, १/१२ की टीका परीक्षामुख, १/४, जयपुर, पृ० १३ वही, पृ० १/५ तत्र अनधिगतार्थधिगन्तृत्वमेव प्रमाणस्य लक्षणम्। - प्रमेयकमलमार्तण्ड, पृ० १६८, देहली २६. ***
SR No.525078
Book TitleSramana 2011 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSundarshanlal Jain, Ashokkumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2011
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size14 MB
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