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________________ २२. २३. २४. २५. २६. २७. २८. २९. ३०. ३१. ३२. ३३. ३४. ३५. ३६. ३७. ३८. ३९. जैन दर्शन में प्रमेय का स्वरूप एवं उसकी सिद्धि : ४९ व्यवहार का एक अन्य उदाहरण- आटे की रोटी में आटा द्रव्य हुआ और रोटी पर्याय, इसके अतिरिक्त अन्य पर्याय हैं- गूंथा हुआ आटा, लोइ, बेली हुई रोटी तथा अन्तिम पर्याय है सिंकी हुई रोटी | एककाले नानाव्यक्ति गतोऽन्वय तिर्यक् सामान्यं भण्यते । नानाकालेष्वेकव्यक्तिगतो- ऽन्वय ऊर्ध्वता सामान्यं भण्यते । - ३९, प्रवचनसार, तात्पर्यवृत्ति, उद्धृत- न्यायमन्दिर, पूर्वोक्त, पृ० ७४, विशेषश्च।। पर्यायव्यतिरेकभेदात् । । - ४ / ६-७, परीक्षामुख, पूर्वोक्त, एकस्मिन द्रव्ये क्रमभाविनः परिणामाः पर्याया आत्मनि हर्षविषादादिवत् । -४/८, वही, अर्थान्तरगतो विसदृश परिणामो व्यतिरेको गोमहिषादिवत्। - ४/९, वही, सामान्य विशेषात्मा तदर्थो विषयः ॥ ४ / १, परीक्षामुख, पूर्वोक्त, अनेकान्तवादप्रवेश, आचार्य हरिभद्र, भोगीलाल लहेरचन्द शाह, पाटन, गुजरात, १९९९, पृ० ३४, वही, वही, वही, न्यायकुमुदचन्द्र, आचार्य प्रभाचन्द्र, प्रथमभाग, सम्पा०- महेन्द्र न्यायशास्त्री, माणिकचन्द दिगम्बर जैन ग्रन्थमाला, बम्बई, २९०, कुमार १९३८, पृ० अनेकान्तवादप्रवेश, पूर्वोक्त, पृ० ३७, वही, पृ० ५, वही, पृ० ३९, वही, पृ० ४१, वही, पृ० ४२, वस्तुत एव समानः परिणामो यः स एव सामान्यम् । असमान वस्तु विशेषो वस्त्ववमनेकरूपं तु । - वही, पृ० ४३, वही, पृ० ५, ***
SR No.525078
Book TitleSramana 2011 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSundarshanlal Jain, Ashokkumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2011
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size14 MB
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