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३२ : श्रमण, वर्ष ६२, अंक ४ / अक्टूबर-दिसम्बर २०११ में द्रौपदी का पूर्वभव ‘ज्ञाताधर्मकथा' के ही सदृश है, किन्तु इसमें द्रौपदी के साथ पाँचों पाण्डवों का भी पूर्वभव बताया गया है, जो पूर्ववर्ती ग्रन्थों में उपलब्ध नहीं होता। इसके अनुसार नागश्री ब्राह्मणी का पूरा कुटुम्ब कालान्तर में द्रौपदी और पाँचों पाण्डवों के रूप में जन्म लेता है। आचार्य हरिषेण ने 'वृहत्कथाकोश'१८ (लगभग ८९८ ई०) में कथा का आधार महाकाव्य 'महाभारत' को ही बनाया है और जैन परम्परागत द्रौपदी के पूर्वभव एवं पद्मनाभ द्वारा हरण की कथा का उल्लेख नहीं किया है। इस कथाकोश में द्रौपदी के स्वयंवर-शर्त के रूप में निश्चित लक्ष्य-सम्बन्धी वर्णन पृथकता लिये हुए है। नेमिचन्द्रसूरि कृत 'आख्यानक-मणिकोश'१९ (१०७२ ई०) में द्रौपदी की कथा में उसके पूर्वभवों तथा पद्मनाभ-हरण का संक्षिप्त वर्णन है। १२वीं शती के द्वितीय और तृतीय चरण में रामचन्द्रसूरि रचित 'निर्भयभीम व्यायोग'२० में 'महाभारत' के ही वृत्तान्त को आधार बनाया गया है। इसमें द्रौपदी सम्बन्धी जो विवरण उपलब्ध होते हैं, वे वैदिक परम्परा में प्राप्त द्रौपदी के ओजस्वी एवं वीर चरित के अनुरूप नहीं हैं। वहाँ वह एक सामान्य नारी के रूप में ही चित्रित है। लगभग इसी काल में (१११३ ई०) रचित हेमचन्द्रसूरि की कृति 'भवभावना' २९ एवं हेमचन्द्राचार्य रचित 'त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित' २२ (सन् ११५९-११७१ ई०) में द्रौपदी के पद्मनाभ-हरण का ही वर्णन आया है। सन् ११९५ ई० में मुनिरत्नसूरिकृत 'अममस्वामिचरित' २३ में द्रौपदी की सम्पूर्ण कथा प्राप्त होती है। द्रौपदी-स्वयंवर एवं द्रौपदी-पूर्वभव का आधार तो 'ज्ञाताधर्मकथा' ही है, किन्तु तत्पश्चात् आने वाली 'द्यूतक्रीड़ा' प्रचलित परम्परानुसार ही है। इस ग्रन्थ के अनुसार पाण्डव वनवास का समय 'द्वारिका' में व्यतीत करते हैं। इसमें अज्ञातवास के वृत्तान्त का पूर्णतया अभाव है। अमरकङ्का-वर्णन भी अन्य ग्रन्थों के समान है।
अमरचन्द्रसूरि विरचित 'बालभारत'२४ (१२२०-१२३७ ई०) नामक महाकाव्य 'महाभारत' का संक्षेपीकरण मात्र है। लगभग इसी काल (१२२०-१२३३ ई०) में देवप्रभसूरि ने ‘पाण्डवचरित' २५ नामक महाकाव्य की रचना की। इस महाकाव्य में कवि ने पाण्डवों की जो कथा लिखी, वह 'ज्ञाताधर्मकथा' एवं 'महाभारत' दोनों से समानता रखती है। 'महाभारत' के अनेक वनवास वृत्तान्तों का इसमें कवि ने कुछ परिवर्तन के साथ विस्तृत वर्णन किया है।