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________________ ६ ): श्रमण, वर्ष ६२, अंक ४ / अक्टूबर-दिसम्बर २०११ वेदान्त में आत्मा को सर्वथा नित्य और व्यापक माना गया है, अतः वहाँ बन्धन और मोक्ष की व्याख्या सापेक्षवाद के बिना दुर्घट है । बौद्ध दर्शन में आत्मा को सर्वथा अनित्य कहा है सो वहाँ भी बन्ध-मोक्ष व्यवस्था सम्भव नहीं है क्योंकि वहाँ कर्मकर्ता, कर्म-बन्धन से छुटकारा प्राप्त करने वाला साधक तथा कर्मफल- भोक्ता अलगअलग हैं। न्याय दर्शन में तो चैतन्याभाव है, अतः यह पक्ष भी मोक्षोपयोगी नहीं लगता। इसीलिए लोगों को वृंदावन के जंगल में निवास करना न्याय वैशेषिक के मोक्ष जाने की अपेक्षा अधिक अच्छा लगता है । १८ जैन अपने आत्मस्वरूपानुसार मोक्ष में दुःखाभाव, अनन्त अतीन्द्रिय ज्ञान, दर्शन, सुख और सामर्थ्य को स्वीकार करते हैं। उसके अरूपी स्वभाव के कारण उसमें अव्याबाधत्व, सूक्ष्मत्व आदि को भी मानते हैं। अव्यवहित पूर्व-जन्म के शरीरपरिमाण के अरूपी आकार को मानते हैं क्योंकि आत्मा न तो व्यापक है और न अणुरूपा ऊर्ध्वगमन स्वभाव होने से लोकान्त में निवास मानते हैं। कर्म-सम्बन्ध न होने से पुनर्जन्म नहीं मानते। जीवन्मुक्तों को ‘अर्हन्त' या 'केवली' कहते हैं और विदेहमुक्त को 'सिद्ध' । द्रव्य का स्वरूप ‘उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य' रूप स्वीकार करने के कारण मुक्तात्मा में भी समानाकार परिणमन तो मानते हैं परन्तु स्थान - परिवर्तन (गमन क्रिया) नहीं मानते। वहाँ सभी मुक्त सदा पूर्णतः कर्ममुक्त रहते हैं तथा सभी समान गुण वाले होते हैं, वहाँ कोई भी भेद नहीं है। यदि कोई भेद माना है तो उपचार से मुक्तपूर्व जन्म की अपेक्षा । कर्माभाव होने से सभी नाम - कर्मजन्य शरीर तथा मन आदि से रहित हैं। शुद्ध चैतन्यरूप आत्मा का वहाँ वास है। ज्ञान, सुखादि आत्मा से पृथक् नहीं हैं। मुक्तावस्था को प्राप्त सभी जीव ईश्वर हैं क्योंकि जैनदर्शन में कोई अनादि दृष्टिकर्ता ईश्वर नहीं है । सभी जीव संसार-बन्धन काटकर मुक्त हुए हैं। मुक्त पूर्णकाम होने से वीतरागी (इच्छारहित) हैं। सन्दर्भ १. श्रेयश्च प्रेयश्च मनुष्यमेतस्तौ संपरीत्य विविनक्ति धीरः। श्रेयो हि धीरोऽभिप्रेयसो वृणीते प्रेयो मन्दो योगक्षेमाद् वृणीते ॥ चित्तमेव हि संसारो रागादिक्लेशवासितम् । तदेव तैर्विनिर्मुक्तं भवान्त इति कथ्यते ।। - कठ० उप० १.२.२
SR No.525078
Book TitleSramana 2011 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSundarshanlal Jain, Ashokkumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2011
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size14 MB
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