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________________ जिज्ञासा और समाधान : १११ कालान्तर में जब मरुभूति का क्रोध शान्त हआ तो वह अपने भाई से क्षमायाचना के लिए उसके पास गया परन्तु कमठ ने क्रोधित होकर उसके ऊपर विशाल शिला से प्रहार कर दिया जिससे इन्द्रभूति का आर्तध्यानपूर्वक मरण हो गया। आर्तध्यानपूर्वक मरण होने से मरुभूति अगले जन्म में तिर्यञ्च योनि में हाथी पर्याय को प्राप्त हुआ। दूसरा भव- इस भव में मरुभूति बज्रघोष नाम का हाथी बनता है और कमठ कुक्कुट नामक सर्प। इस भव में हाथी मुनिवेशधारी राजा अरविन्द के उपदेश से श्रावक के व्रतों को धारण करता है और उसे सम्यक्त्व की प्राप्ति होती है। कमठ के जीव सर्प के द्वारा डसे जाने पर वह हाथी मृत्यु को प्राप्त होता है। तीसरा भव- इस भव में मरुभूति श्रावक के व्रतों को धारण करने के कारण सहस्रार स्वर्ग में देव होता है और कमठ धूमप्रभ नामक पाँचवें नरक में जन्म लेता है। चौथा भव- इस भव में मरुभूति विद्युत्गति और विद्युत्माला के पुत्र के रूप में जन्म लेता है जहाँ उसका नाम अग्निवेग/किरणवेग/रश्मिवेग रखा जाता है। कमठ अजगर के रूप में जन्म लेता है और ध्यानस्थ अग्निवेग मुनि को डसता है। मुनि डसने वाले सर्प के प्रति दयाभाव रखते हैं तथा उसके अपकार को भी उपकार मानते हैं। पाचवाँ भव- इस भव में मरुभूति अच्युत स्वर्ग में विद्युत्प्रभ देव होता है और कमठ छठे नरक को प्राप्त करता है। छठा भव- इस भव में मरुभूति बज्रवीर्य और विजया के पुत्र के रूप में बज्रनाभ चक्रवर्ती होता है और कमठ कुरंग/कुरंगक नामक भील बनता है। इस भव में भी कमठ अपने बाणों से ध्यानस्थ बज्रनाभ मुनि का वध करता है। सातवाँ भव- इस भव में मरुभूति मध्यम प्रैवेयक स्वर्ग जाता है और कमठ सातवें नरक में उत्पन्न होता है। आठवाँ भव- इस भव में बज्रबाहु/कुलिशबाहु और प्रभंकरी/सुदर्शना के पुत्र के रूप में आनन्द/सुवर्णबाहु नामक चक्रवर्ती राजा होता है और कमठ सिंह पर्याय में जन्म लेता है। यहाँ भी वह ध्यानस्थ मुनि का भक्षण करता है। शान्तपरिणामों के कारण मरुभूति तीर्थंकर नामकर्म प्रकृत्ति का बन्ध करता है। नवौं भव- इस भव में मरुभूति आनत/प्राणत स्वर्ग में महर्धिक देव होता है और कमठ चौथे नरक में जाता है। दसवाँ भव- इस भव में मरुभूति तीर्थंकर पार्श्वनाथ के रूप में जन्म लेता है और कमठ सम्वर/महिपाल नामक नीच जाति (असुर जाति) का देव होता है। इन दस भवों के मध्य में दोनों के अवान्तर कई जन्म होते हैं जिनका विशेष महत्त्व न होने के कारण केवल दस भवों को दिखाया गया है। इनमें भी दूसरा, आठवाँ और दसवाँ भव अधिक महत्त्वपूर्ण है। दसवें भव में दो प्रमुख घटनाएँ घटती हैं
SR No.525078
Book TitleSramana 2011 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSundarshanlal Jain, Ashokkumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2011
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size14 MB
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