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________________ १४ जैन दर्शन में इच्छा-स्वातन्त्र्य की समस्या : ६७ Modrent Introduction to Ethics, p. 358, Illinos. 'स्वातंत्र्य च नाम यथेच्छं तत्रेच्छाप्रसरस्य अविघात:'।- प्रत्याभिज्ञाहृदयम् - (उपोद्घात) जयदेव सिंह, पृ० १६। ९- A Modrent Introduction to Ethics, p. 358, Illinos. कर्म प्रकृति, आचार्य नेमिचन्द्र, सं० गोकुल चन्द्र, भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन, १९६८, पृ० २०। ११- जिनेन्द्र वर्णी, जैनेन्द्र सिद्धांत कोश- भाग-३, पृ० १६९। पूज्यपाद, सर्वार्थसिद्धि, १.४.१४.४।। ___ कर्म-सिद्धान्त (बिन्दु में सिन्धु), श्री देवेन्द्र मुनि शास्त्री, श्री तारक जैन ग्रन्थालय, उदयपुर (राज.), पृ० ५८। (१) स्थानाङ्गसूत्र, ४.२.६३, (२) तत्त्वार्थसूत्र, ८.३, (३) कर्मप्रकृति (आचार्य नेमिचन्द्र) सूत्र १५, पृ० ३, (४) कर्म प्रकृति (अभयचन्द्र सिद्धान्त चक्रवर्ती) सूत्र २। १५- कर्म प्रकृति (अभयचन्द्र सिद्धान्त चक्रवर्ती) सूत्र ३, पूर्वोक्त। (१) स्थानाङ्गसूत्र, ८.३.४८२, (२) भगवतीसूत्र, ६.३.१०.२२, (३) गोम्मटसार (कर्मकाण्ड), गाथा ८, पृ० ४, (४) कर्म-प्रकृति (अभयचन्द्र सिद्धान्त चक्रवर्ती), सूत्र ५। गोम्मटसार (कर्मकाण्ड), पृ० ४१। १८- आचार्य महाप्रज्ञ, जैन दर्शन मनन और मीमांसा, आदर्श साहित्य संघ, चुरु (राज.), पृ० ३०६। गोम्मटसार (कर्मकाण्ड), गाथा १८५, श्री मन्नेमिचन्द्राचार्य, परमश्रुत प्रभावक मण्डल, श्रीमद् रामचन्द्र आश्रम, आगास, पृ० ७५। मुनि श्री न्याय विजय, जैन दर्शन, पृ० ४५५। आचार्य महाप्रज्ञ, जैन दर्शन मनन और मीमांसा, पूर्वोक्त, पृ० ३१३। कर्म ग्रन्थ, भाग-१, मरुधर केसरी प्रर्वतक मुनि मिश्रीमल, श्री मरुधर केसरी साहित्य प्रकाशन समिति, जोधपुर (व्यावर), पृ० ६२। आचार्य महाप्रज्ञ, जैन दर्शन मनन और मीमांसा, पूर्वोक्त, पृ० ३१३। २४- वही, पृ० ३१३। २५- कर्म ग्रन्थ, भाग-१, पूर्वोक्त, पृ० ६२।। २६- वही, पृ० ६२। २७- देवेन्द्र मुनि शास्त्री, जैन दर्शन स्वरूप और विश्लेषण, श्री देवेन्द्र मुनि शास्त्री, श्री तारक जैन ग्रन्थालय, उदयपुर (राज.), पृ० ४४५। १७ २२
SR No.525077
Book TitleSramana 2011 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSundarshanlal Jain, Ashokkumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2011
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size12 MB
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