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________________ ३२ : श्रमण, वर्ष ६२, अंक ३ / जुलाई-सितम्बर - २०११ अरिष्टनेमि से उनके सारथी ने कहा- ये सभी भद्र प्राणी आपके विवाह कार्य में आये हुए बहुत से लोगों (मांसभोजियों) को खिलाने के लिए पकड़े गए हैं।२१ इन शब्दों को सुनकर भगवान् अरिष्टनेमि के मन में पशु-पक्षियों के प्रति अत्यन्त वेदना हुई और वे पशु-पक्षियों को मुक्त कराकर, विवाह करने से इनकार कर निर्ग्रन्थ बनने चल पड़े। ऐसे कई उदाहरण जैनधर्म में मिलते हैं जिनमें तीर्थङ्कर आगे बढ़कर अहिंसा का एक आदर्श प्रस्तुत करते हैं। इसी क्रम में धरणेन्द्र और पद्मावती (नाग-नागिन) का प्रसंग पार्श्वनाथ से जोड़कर देखा जाता है। ऐसा माना जाता है कि कमठ के उपसर्गों से धरणेन्द्र और पद्मावती ने पार्श्वनाथ को बचाया और उनके केवल ज्ञानप्राप्ति के साधन बने। भगवान् पार्श्व का कमठ (महिपाल) से नाग-नागिन को बचाने की गुहार करना उनके जीवजन्तुओं प्रति अहिंसकवृत्ति को दर्शाता है। जैनधर्म में यत्र-तत्र जीव-जन्तुओं की रक्षा के लिए तीर्थङ्करों के साथ उन्हें रखा जाता है। जैन तीर्थङ्कर प्रतिमाओं को एक दूसरे से पृथक् करने के लिए जिन प्रतीक चिह्नों (साधनों) का प्रयोग किया जाता है उनमें भी वन्य जीवों को ही प्राथमिकता मिली है, यथातीर्थङ्कर लाञ्छन क्षन ऋषभदेव बैल (वृषभ) अजितनाथ गज सम्भवनाथ अश्व अभिनन्दननाथ कपि पद्मप्रभ कमल सुमतिनाथ क्रौंच पुष्पदन्तनाथ मकर श्रेयान्सनाथ गेंडा वासुपूज्य महिष विमलनाथ वराह अनन्तनाथ श्येनपक्षी शान्तिनाथ कुंथुनाथ छाग अल्हनाथ (अरनाथ) मतत्स्य सुव्रतनाथ कूर्म मृग
SR No.525077
Book TitleSramana 2011 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSundarshanlal Jain, Ashokkumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2011
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size12 MB
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