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________________ ३० : श्रमण, वर्ष ६२, अंक ३ / जुलाई-सितम्बर - २०११ १८. अरनाथ- आम्रवृक्ष १९. मल्लीनाथ (मल्लिनाथ) - अशोक २०. मुनिसुव्रतनाथ - चम्पक २१. नमिनाथ- बकुल २२. नेमिनाथ- वेत्रसवृक्ष २३. पार्श्वनाथ- धातकीवृक्ष २४. महावीर (वर्द्धमान) - शालवृक्ष इस प्रकार हम यह देखते हैं कि जैनपरम्परा के अनुसार प्रत्येक तीर्थङ्कर ज्ञानप्राप्ति के पश्चात् अशोक वृक्ष की छाया में बैठकर ही अपना उपदेश देते थे इससे भी उनकी प्रकृति और पर्यावरण के प्रति सजगता प्रकट होती है। अशोक वृक्ष की छाया में बैठकर उपदेश देने का निहितार्थ यही होगा कि इससे वृक्षों के प्रति जनमानस की श्रद्धा बढ़े जिससे वे इन वृक्षों को संरक्षित करने के लिए प्रयासरत हों। यह मानव प्रकृति है कि जिस वस्तु को हम अपनी आस्था से जोड़ लेते हैं उसके लिए हम अच्छा ही सोचते हैं। कहीं न कहीं तीर्थङ्करों ने जनमानस की इन भावनाओं को समझा और उनका यह प्रकृति - प्रेम, प्रकृति संरक्षण के रूप में विकसित हुआ। निश्चित रूप से उस समय ऐसी परिस्थितियाँ रही होगीं कि लोग वृक्षों, वनों के प्रति निर्मम रहे हों जिसके फलस्वरूप वनों एवं वृक्षों के संरक्षण के लिए जैनधर्म में प्रत्येक तीर्थङ्कर के साथ चैत्य-वृक्षों को जोड़ दिया गया और इस प्रकार वे चैत्य-वृक्ष भी जैनों के लिए प्रतीक रूप पूज्य बन गये । प्राचीनकाल में जैनमुनियों को वनों में ही रहने का निर्देश था। फलतः वे प्रकृति के अत्यधिक निकट होते थे। कालान्तर में जब कुछ जैनमुनि चैत्यों या बस्तियों में रहने लगे तब इनके दो विभाग हो गये १. चैत्यवासी २. वनवासी। किन्तु इसमें भी चैत्यवासी की अपेक्षा वनवासी मुनि ही अधिक आदरणीय बने । जैन परम्परा में वनवास को सदैव ही आदर की दृष्टि से देखा गया। भारत के सभी दार्शनिकों ने प्रायः वनस्पति को सचेतन माना है किन्तु वनस्पति में ज्ञान- चेतना अल्प होने के कारण उसके सम्बन्ध में दार्शनिकों ने कोई विशेष चिन्तन-मनन नहीं किया। जैन-दर्शन में वनस्पति के विषय में बहुत सूक्ष्म एवं व्यापक चिन्तन किया गया है। मानव-शरीर के साथ जो इसकी तुलना की गई है, वह आज के वैज्ञानिकों के लिए आश्चर्यजनक व उपयोगी तथ्य है। जब सर जगदीश चन्द्र बोस ने वनस्पति में मानव के समान ही चेतना की वैज्ञानिक प्रयोगों द्वारा सिद्धि कर
SR No.525077
Book TitleSramana 2011 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSundarshanlal Jain, Ashokkumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2011
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size12 MB
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